नई दिल्ली। देश के 14वें राष्ट्रपति का चुनाव खत्म होस चुका है रामनाथ कोविंद देश के 14 वें राष्ट्रपति की शपथ भी ले चुके है 20 साल के बाद दूसरे राष्ट्रपति ऐसे है जो कि दलित वर्ग से आते है। अपनी गरीबी जीवन के किस्से याद करते व सुनाते हुए उन्होंने कहा कि मैने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन देश का राष्ट्रपति बनूंगा।
लेकिन अक्सर होता वहीं है जो हम सोचते नहीं है खैर उन्हें ये बताने का शायद सही वक्त नहीं है उनका अहसास भले ही नया और आहलादक हो लेकिन देश का पुराना पड़ चुका है इसलिए कि अपनी राजनीति से उसके रिश्तों में इतनी उलझनें घर बना चुकी है कि उसे राजसत्ता के प्रागंण में जो कुछ भी घटता है आमतौर पर उन अघटनीय जैसा ही लगता है जिनके बारे में उसने कभी सोचा नहीं होता या सोचना नहीं चाहता।
मिसाल के लिए उसने कब सोचा था कि उसकी आजादी 75 साल की होने के पहले ही उसकी सत्ताओं द्वारा लगातार बढ़ाई जाती रही समाजिक सांस्कृतिक व आर्थिक गैरबराबरियों का ग्रास होकर उच्च व मध्य वर्गो और उनकी सुखासीन जमातों के मनपंसद हथियार में बदल जाएगी फिर उसके यह सोचने का तो सवाल ही नहीं था कि इस आजादी की बिना पर हासिल लोकतंत्र की सार्थकता उनकी जय जयकार करने उनके द्वारा प्रदर्शित पराक्रमों पर खुश होकर तालियां बजाने तक ही सीमित हो जाएगी।