लखनऊ। जातीय जनगणना की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश में भी सियासी दल सक्रिय हो गये हैं। विपक्षी दलों के अलावा सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ नेता और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल एस ने भी जातीय जनगणना कराये जाने की मांग की है। वहीं उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने जातीय जनगणना को गैर जरूरी बताया है।
लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि जातीय जनगणना भारतीय लोकतंत्र को जाति तंत्र में बदल सकता है जो राष्ट्रहित में नही होगा । इसलिए इस पर खुली बहस विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लेना उपयुक्त होगा ।
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर प्रभाव डालेगा। सामाजिक शैक्षिक रूप से विपन्न और सामाजिक ढांचे से बहिष्कृत जातियों की गणना से उनकी भागीदारी की बात सुनिश्चित होती है किन्तु जातीय जन गणना बड़े जातीय समूहों की एक नई सूबेदारी को जन्म दे सकता है जिसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम वंचित समूहों को भुगतना पड़ सकता है। यह आरक्षण की परिभाषा को भी बदलेगा और बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर के संविधान सभा मे उस संकल्प को भी बदल देगा जिसमंे उन्होंने कहा था कि आरक्षण हर हाल में 50 प्रतिशत की सीमा के भीतर ही होना चाहिए।