नई दिल्ली : भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल सौदे के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दायर की गई याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने केंद्र सरकार से राफेल पर फैसले की प्रक्रिया का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में सौंपने को कहा है। इसके लिए अदालत ने केंद्र को 29 अक्टूबर तक का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी।
सौदे की प्रक्रिया की जानकारी मांगी
सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि उसे कीमत और सौदे के तकनीकी विवरणों से जुड़ी सूचनाएं नहीं चाहिए। अदालत ने सिर्फ सौदे की प्रक्रिया की जानकारी मांगी है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वह याचिकाओं में लगाए गए आरोपों को ध्यान में नहीं रख रहा है।
इस बीच केंद्र ने भी राफेल पर दाखिल जनहित याचिकाओं का विरोध किया और यह कहते हुए उन्हें खारिज करने का अनुरोध किया कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए ये याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
विनीत धांडा की ओर से दायर की
बता दें कि यह याचिका अधिवक्ता विनीत धांडा की ओर से दायर की गई है, जिसपर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की पीठ ने सुनवाई की। इस याचिका में राफेल सौदे पर रोक लगाने के लिए कहा गया था। उन्होंने अपनी अर्जी में फ्रांस के साथ लड़ाकू विमान सौदे में विसंगतियों का आरोप लगाते हुए उसपर रोक लगाने की मांग की थी।
कांग्रेस ने लगाए आरोप
बता दें कि राफेल मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश कर रही हैं। इस मामले पर पीएम द्वारा साधी गई चुप्पी पर राहुल गांधी सवाल उठा रहे हैं।
कांग्रेस का आरोप है कि पीएम मोदी ने फ्रांस की सरकार से 36 लड़ाकू विमान खरीदने का जो सौदा किया है उसका मूल्य यूपीए कार्यकाल में किए गए सौदे की तुलना में अधिक है। जिसकी वजह से सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। पार्टी का दावा है कि पीएम मोदी ने इस सौदे को बदलवाया और ठेका एसएएल से लेकर रिलायंस डिफेंस को दे दिया।