गैरसैंण। आखिर फिर वही ढाक के तीन पात का खेल हुआ सियासी शह मात के खेल में आखिरकार उत्तराखंड का विशेष विधानसभा सत्र समाप्त हो कर संत्र में विपक्ष का वॉक आउट और सरकार की वेरूखी ने गैरसैंण के भविष्य को अधर में लटा दिया। आखिर गैरसैंण पर सरकार ने कोई ऐलान तो नहीं किया लेकिन ाने वाले समय में सत्र को लेकर एक अनुरोध संकल्प सदन में जरूर रखा।
सूबे के गठन को 16 साल हो गये पर गैरसैंण को लेकर सरकारों ने कभी कोई ठोस निर्यण नहीं लिया गैरसैंण का मुद्दा अब चुनावी साल में एक बार फिर गरमाने लगा है। कांग्रेस ने भी सत्ता में आने के पहले इस मुद्दे को खूब उछाला था लेकिन इसके बाद केवल वह सत्र आहुत करने तक सीमित रह गई है। विपक्ष लगातार इस मामले में सरकार से गैरसैंण को लेकर अपना नजरिया सामने रखने को कह चुकी है। लेकिन सरकार चुनावी साल में कोई एलान कर अपने वोटों से नहीं खेलन चाहती।
इससे पहले भाजपा ने इस मुद्दे पर बहस कराने की मांग को लेकर सदन का बहिष्कार कर दिया था। लिहाजा विपक्ष की गैरमौजूदगी में सरकार ने केन्द्र से गैरसैंण की अवस्थापना के लिए 1 हजार करोड़ की वित्तीय अरोध का संकल्प पेश कर ध्वनिमत से पारित करा। सीएम रावत ने एक बार फिर गैरसैंण पर राजनीति को सूबे में गरम कर दिया है। भाजपा इससे लेकर रावत सरकार की अंदेखी का आरोप लगा जनता के बीच सरकार की किरकिरी करा रही थी।
लेकिन एक बार फिर गैरसैंण को लेकर जनता के हाथ लेकर सवाल ही लगे क्या गैरसैंण के दिन बहुरेगे ये भी राजधानी या ग्रीष्मकालीन ही राजधानी बनेगी या यूं ही गैरसैंण में विधान सभा का सदन आहुत होगा। विपक्ष सरकार से जबाब मांगने की बात कर बहिष्कार करेगा तो सरकार फिर एक नया सगूफा छोड़ जनता को फिर गुमराह करेगी। गैरसैंण ही नहीं अब जनता भी अपनी सरकारों से इस मुद्दे पर जबाब चाहती है। लेकिन सरकार है कि सीधा-सीधा तो क्या गोल-मोल सा भी जबाब नहीं देती।