लखनऊ। रविवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने बताया कि जिसको ब्रह्म ज्ञान होता है वह ठीक समझता है कि आत्मा अलग है और देह-अलग। स्वामी जी ने बताया कि यह तत्व समझाने के लिए श्री रामकृष्ण ने तीन दृष्टांत दिये है। श्री रामकृष्ण ने कहा, “ईश्वर के दर्शन करने पर फिर देहात्मबुद्धि नहीं रह जाती। दोनों अलग-अलग है। जैसे नारियल का पानी सूख जाने पर भीतर का गोला और ऊपर का भाग अलग-अलग हो जाता है।
आत्मा भी उसी गोले की तरह मानो देह के भीतर खड़खड़ाती हो। उसी तरह विषय बुद्धि रूपी पानी के सूख जाने पर आत्मज्ञान होता है तब आत्मा एक अलग चीज जान पड़ती है और देह एक अलग चीज। कच्ची सुपारी या कच्चे बदाम के भीतर का गूदा छिलके से अलग नहीं किया जा सकता है। परंतु जब पक्की अवस्था होती है, तब सुपारी और बदाम छिलके से अलग हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि पक्की अवस्था में रस सूख जाता है। ब्रह्म ज्ञान के होने पर विषय-रस सूख जाता है।” स्वामी जी ने कहा कि जब तक हमारे मन के भीतर विषय भोग की आसक्ति रह जाती है तब तक आत्मा को, शरीर और मन को चिपक के रखना जरूरी है। कारण शरीर एवं मन के माध्यम से ही आत्मा विषय रस लेती है लेकिन जब हमारे भीतर का भोग-वासना खत्म हो जाता है तब भोग-वासना चरितार्थ करने के लिए यह शरीर और मन निस्प्रयोजन हो जाता है और तभी आत्मा शरीर और मन से निर्लिप्त हो जाती है, पृथक हो जाती है। जैसे-नारियल का गोला, बदाम और सुपारी।
यदि हम लोग ब्रह्म ज्ञानी का आनंद लेना चाहते हैं तो हमें भगवान के श्री चरणों में आंतरिक प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हमारे भीतर का विषय-रस जितना जल्दी हो सके वह सूख जाए एवं तब हमारी आत्मा देह और मन से अलग हो जाएगी एवं हम असीम आनंद लेते हुए जीवन सार्थक कर पाएंगे।