नई दिल्ली। कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? क्यों मारा ? आखिर क्यों? ये सवाल बाहुबली की पहली पार्ट देखकर थियेटर से उठते समय सबके ज़ुबान पर था। दिल और दिमाग ने तो बाहुबली फिल्म को जकड़ रखा था। समझ नहीं आ रहा था कि फिल्म देखकर बोलें क्या। क्या बताएं कि कितनी अच्छी है या धमाकेदार है पर इन तमाम चीजों से बढ़कर था वो सवाल जो फिल्म के क्लाईमेक्स के साथ मुंह खोलने पर मजबूर किए हुआ था।
जब बाहुबली- द बिगनिंग खत्म हुई तो इंतजार था इसके अगले पार्ट का। जिसमें जवाब छिपा था। सोशल मीडिया में इस पर हजारों-करोड़ों जोक्स भी बने पर बैचेनी उस हंसी से बढ़कर थी।
2 साल की कठिन तपस्या और आई वो तारीख जिसमें दुनिया जानने वाली थी कि ऐसा क्या हुआ होगा कि कटप्पा जो जिसे बाहुबली ने अपना मामा मान लिया था उसके साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों हुआ। फिल्म रिलीज होते ही उत्साह चरम सीमा पर पहुंच गया और थियेटर से बाहर निकलने पर सबको पता चल गया कि……..
बाहुबली-द कनक्लूजन सिर्फ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा से बढ़कर कुछ और ही है। यह फिल्म सिर्फ एक सवाल का जवाब नहीं बल्कि उस बेचैनी को राहत देने वाला एहसास है। एक मां की ममता पर उठता सवाल है। राजा और प्रजा के रिश्ते का मतलब है। यह फिल्म उस धर्मसंकट के बारे में है जहां एक राजा मां और पत्नी से ज्यादा वचन और शासन के बीच फंसा हुआ है। यह फिल्म है सत्ता के लालच के बारे में, प्रेम और घृणा के बारे में। विश्वास के बारे में विश्वासघात के बारे में।
भारतीय सिनेमा में जहां फिल्मों के उलजुलूल होने के धब्बा लगा रहता है उस झूठ को उखाड़ फेंकने का काम किया है राजा एस एस मौली ने। उन्होनें एक ऐसी फिल्म बनाई है जो सिर्फ एक फिल्म नहीं है बल्कि एतिहासिक कदम है। यह फिल्म उन फिल्मों की तरह नहीं है जहां इस कहावत को चरितार्थ किया जाता है कि बॉलीवुड में हर शुक्रवार नया हीरो पैदा होता है और अगले शुक्रवार कोई और उसकी जगह ले लेता है। शुक्रवार को जब बाहुबली रिलीज हुई तो हीरो पैदा हो चुका था जो किसी शुक्रवार को तो क्या किसी के दिल या दिमाग से उतरने वाला नहीं है और वह हीरो है अमरेंद्र बाहुबली यानी प्रभास।
प्रभास ने फिल्म में दो किरदारों को जिया है एक अंमरेंद्र बाहुबली और दूसरा महेंद्र बाहुबली। दोनो ही किरदार एक समान है। ताकतवर,बलशाली, बुद्धिजीवी, प्रेम करने वाला लेकिन पिता का किरदार बेटे के किरदार पर भारी पड़ता दिखता है।
प्रजा का उत्साह देखकर हम खूद महसूस करते हैं कि इससे अच्छा राजा कोई नहीं बन सकता, लेकिन महेंद्र को देखकर हमें यकीन होता है कि यह लड़ाई कितनी तगड़ी होगी क्योंकि बाहुबली अभी जिंदा है।
इस फिल्म की सबसे खास बात है कि इसमें महिलाओं का किरदार बेहद सशक्त और ताकतवर दिखाया गया है। चाहे कृष्णा रमैया का शिवगामी का किरदार हो या अनुष्का का देवसेना का किरदार। तलवार चलाती और राजनीति करते ये किरदार सिर्फ हीरो का दिल ही नहीं दर्शकों का दिल भी छीन लेते हैं।
फिल्म में भल्लालदेव का किरदार निभाने वाला राना ने बाहुबली को गजब की टक्कर दी है। उतना ही बलशाली, ताकतवर, बुद्घिजीवी लेकिन षड्यंत्र रचने वाला और आंखों में माहिष्मति के ताज की चमक देखने वाला भल्ला एक बेहतरीन नकारात्मक किरदार है जिससे हम नफरत तो कर सकते हैं लेकिन उसके बल और बुद्धि पर संदेह नहीं जता सकते।
एक दम अंत में कटप्पा जिनके किरदार को शब्दों में बयान ही नहीं किया जा सकता है। यह फिल्म एक मिल का पत्थर है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा और जैसे हमारे मां-पिता हमें मदर इंडिया व मुगले आजम की तारीफ कर देखने की सलाह देते हैं ठीक वैसे ही बाहुबली देखने की सलाह हम अपनी आने वाली पीढ़ी को देंग…