राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भारतीय वन सेवा के 2017 बैच के प्रोबेशन अधिकारियों ने मुलाकात की। राष्ट्रपति कोविंद ने इस मौके पर अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले कुछ दशकों में विश्व ने पर्यावरण को हो रही क्षति, तेजी से खत्म हो रहे वनों, और ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में आने वाले परिवर्तन के खतरों को महसूस किया है।उन्होंने कहा 21वीं सदी में पर्यावरण संरक्षण चिंता का प्रमुख विषय है जिसका एकमात्र सामधान जंगल हैं।
भारत में वन संरक्षण के प्रयासों में उन स्थानीय लोगों की भागीदारी सबसे जरूरी है
कोविंद ने बताया कि खासतौर से भारत में वन संरक्षण के प्रयासों में उन स्थानीय लोगों की भागीदारी सबसे जरूरी है, जिनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है। साथ ही उन्होंने कहा कि आदिवासियों सहित बड़ी संख्या में गरीब आबादी देश के जंगलों में और उसके आस-पास बसती है।
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राष्ट्रपति ने जंगल पर निर्भर रहने वाले लोगों की जंगल के संरक्षण के लिए भागीदारी को जरूरी बताया है
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ने जंगल पर निर्भर रहने वाले लोगों की जंगल के संरक्षण के लिए भागीदारी को जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि भोजन, ईंधन और चारे जैसी अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए ये लोग वनों पर ही निर्भर रहते हैं। वन इनकी परम्पराओं और आस्थाओं का हिस्सा है, जिसका ये सम्मान करते हैं। इसलिए वनों के संरक्षण के किसी भी प्रयास में इन लोगों के प्रति संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए और इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
वनों के संरक्षण के लिए हमने जो प्रबंधन मॉडल अपनाया है, वह ”केयर एंड शेयर” के सिद्धांत पर आधारित है
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि वनों के संरक्षण के लिए हमने जो प्रबंधन मॉडल अपनाया है, वह ‘केयर एंड शेयर’ के सिद्धांत पर आधारित है।इसमें वन प्रबंधन में स्थानीय लोगों और समुदायों की भागीदारी को समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को चाहिए कि वह वन प्रबंधन में वैज्ञानिक तरीकों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं को भी पर्याप्त स्थान दें। वनों को बचाने के सतत् और प्रभावी प्रयास तभी संभव हो पाएंगे।
महेश कुमार यदुवंशी