मोरक्को की सत्तारूढ़ पार्टी इस्लामिक पार्टी को इस महीने करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। अरब स्प्रिंग के उत्तरी अफ्रीका में अहम भूमिका निभाई थी। मोरक्कों में इसे एक अहम घटना माना जा रहा है कि आखिर इस तरह की पार्टी कैसे ऐसे हार सकती है। अरब स्प्रिंग के दौर में डेवलपमेंट एंड जस्टिस पार्टी (पीजेडी) मध्य पूर्व के विस्तृत इलाके में चुनाव जीतकर सत्ता में आने वाली पहली पार्टी थी। लेकिन अब ये पार्टी 125 सीटों से घटकर महज़ 12 सीटों तक रह गई है।
बता दें कि 2011 में मोरक्को में इस्लामिक दल के सत्ता में आने को लेकर नई शुरुआत के तौर पर देखा गया था। पीजेडी ने देश में समय के साथ नयी ऊँचाइयाँ हासिल की थीं। अरब स्प्रिंग के दौरान सबसे पहले क्रांति का बिगुल ट्यूनीशिया में देखने को मिला था। इसके बाद, यह दूसरे देशों तक पहुंचा। इस आंदोलन के चलते ट्यूनीशिया में ज़ेन अल अबेदीन बेन अली, मिस्र में होस्नी मोबारक और लीबिया में मुअम्मर गद्दाफ़ी की सत्ता छिन गई थी। मिस्र और ट्यूनिशिया इतिहास बदलने को तैयार थे।
ऐसे समय में मोरक्को के बादशाह मोहम्मद ने बदलाव की हवा को भांपते हुए तेज़ी से वो काम किए, जिससे सत्ता पर कोई ख़तरा न आए। उन्होंने कैबिनेट और संसद को भंग कर दिया। बढ़ते विरोध को रोकने के लिए मोरक्को को नई राह पर ले जाने के वादे के साथ उन्होंने नया संविधान तैयार करने की घोषणा कर दी।
दिखावे के लिए था बदलाव
यह प्रस्ताव गेम चेंजर साबित हुआ और 98.5 प्रतिशत लोगों ने इसे अपना समर्थन दिया. मोरक्को के बादशाह आम लोगों के साथ सत्ता की भागीदारी करना चाहते हैं, ये संदेश भी आम लोगों तक पहुंचा. अरब स्प्रिंग जिन बदलावों की मांग के चलते शुरू हुआ था, उसे देखते हुए लेकिन राजा के ‘बदलाव’ के वायदे को कई ने मात्र दिखावे का माना। जिस मोरक्को में लोग राजतंत्र को बदलने के लिए सड़कों पर उतर आए थे, वहां लोग संवैधानिक राजतंत्र के लिए तैयार हो गए। इसका मतलब ये हुआ कि ब्रिटेन या स्कैंडिनेवियाई देशों की तरह बादशाहत तो रहेगी, लेकिन वह शासन नहीं कर सकेंगे। हालांकि इस प्रक्रिया के तहत, बादशाह ने नए संविधान के तहत भी पहले से अपने पास मौजूद लगभग सभी शक्तियों को कायम रखा। उन्होंने विदेश, रक्षा और सुरक्षा नीति पर अपना नियंत्रण जारी रखा.