उत्तराखंड

यूके में भी मोदी लहर विद्यमान, कांग्रेस को यहां भी हुआ बड़ा नुकसान

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एजेंसी, देहरादून। लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद पूरे देश में जहां एक ओर भाजपा की जीत का जश्न मनाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर हारे हुए प्रत्याशी मंथन करने में जुटे हैं। उत्तराखंड में मोदी की आंधी से कांग्रेस के तंबू उड़ गए। भाजपा ने कांग्रेस से लगभग दोगुने वोट लेकर सभी पांच सीटों पर जीत हासिल कर ली। राज्य बनने के बाद पहली बार कांग्रेस को इतना बड़ा सदमा लगा है।
अपनी राजनीतिक दुर्गति के लिए कांग्रेस कभी भाजपा के छलावे को जिम्मेदार ठहरा रही है और कभी ईवीएम को दोष दे रही है। हालांकि मतगणना से एक दिन पहले पार्टी ने यह कहकर एक तरह से हार मान ली थी कि उत्तराखंड में चुनाव रद करके दोबारा मतदान कराया जाए। दूसरी ओर, भाजपा समूचे राज्य में जीत का जश्न मना रही है।

कांग्रेस को गुटबाजी से भी हुआ नुकसान

राज्य में पिछले दो साल से कांग्रेस विपक्ष में है। उसने जन समस्याओं पर कोई यादगार और प्रभावी आंदोलन नहीं किया। कुछ ही दिन पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के गुटों का अलग अलग आंदोलन इसका उदाहरण बना। संगठन के लिहाज से भी कांग्रेस कमजोर पड़ी।

भाजपा के काम आया मोदी फैक्टर

हालांकि गुटबाजी भाजपा में भी है। लेकिन वहां इसका असर पार्टी के कार्यक्रमों पर नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, उनके मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नरेश बंसल और संगठन की पूरी टीम लगातार लगी रही। भाजपा के पक्ष में मोदी फैक्टर काम कर रहा था। लेकिन सरकार और संगठन के नेताओं की मेहनत ने भाजपा को वोटर के और करीब पहुंचाने में पूरी मदद की। मुख्यमंत्री हर रोज कुमाऊं और गढ़वाल में कई सभाएं कर रहे थे। दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता हरीश रावत और प्रीतम सिंह अपनी अपनी चुनावी लड़ाई में फंसे रहे।

भट्ट को सबसे बड़ा फायदा

उत्तराखंड में सबसे बड़ा सियासी फायदा अजय भट्ट ने बटोरा। विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद वे हारे। फिर भी कठिन दिनों में पार्टी हाईकमान का उन पर भरोसा बना रहा और उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा। बड़े अंतर से चुनाव जीते भट्ट के लिए हाईकमान का यही भरोसा दिल्ली की सियासत में बड़ा दरवाजा खोल सकता है। उन्हें मंत्री पद का दावेदार माना जाने लगा है।

रावत को सबसे बड़ा नुकसान

सबसे बड़ा सियासी नुकसान हरीश रावत को उठाना पड़ा। लगातार हार से वे राजनीतिक रूप से कमजोर पड़ गए हैं। अपनी पसंद की सीट पर बड़ी हार सामना करना पड़ा। अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने का जोखिम अब शायद ही उठा पाए। हालांकि कांग्रेस के मौजूदा हाल के चलते दिल्ली में उनकी हैसियत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

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