नई दिल्ली। देश के तटवर्ती दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बीच 120 साल पुराने कावेरी जल विवाद को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है,जिसको लेकर तीन राज्य सरकारों की सांस अटकी हुई है। ये फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मई-जून में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगर फैसला कर्नाटक के पक्ष में आता है तो कांग्रेस के लिए ये किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होगा। दरअसल कावेरी जल विवाद को लेकर तीनों राज्यों ने न्यायाधीकरण के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें पानी के बंटवारे को लेकर फैसला हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने पिछले साल 20 सितंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था,जिसके बाद 120 साल पुराने इस जल विवाद पर सरकार से लेकर विपक्ष तक की नजरे टीकी हुई है। आपको बता दें कि साल 2007 में कावेरी जल विवाद पर न्यायाधीकरण के फैसले को तमिलनाडु,केरल और कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायाधीकरण ने साल 2007 में इस विवाद पर सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा था कि कर्नाटक को कावेरी का 1000 मिलियन क्यूबिक पानी तमिलनाडु के मेटटूर बांध में छोड़ना देना चाहिए।
जबकि कर्नाटक को 270, केरल को 30 और केरल को सात टीएमसी फीट जल आवंटित किया था। सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले को लेकर बेंगलुरु में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। पत्रकार वार्ता में बेंगलुरु पुलिस आयुक्त टी सुनील कुमार ने बताया कि 15,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाएगा। इसके अलावा कर्नाटक स्टेट रिजर्व पुलिस और अन्य बलों को भी तैनात किया जाएगा। आयुक्त ने कहा, ‘संवेदनशील इलाकों पर विशेष नजर रखी जाएगी, जहां इसे लेकर पहले दंगे हो चुके हैं।’