शैलेंद्र सिंह, लखनऊ: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से पैदा हुए हालातों को देखते हुए केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने छात्रों व उनके अभिभावकों के हित में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर दीं।
अब ऐसे में जिन अध्यापकों ने दिन-रात मेहनत करके बच्चों को सालभर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा के लिए तैयार किया। पहले ऑफलाइन कक्षाओं और कोरोना संकट के कारण ऑनलाइन कक्षाओं में बच्चों के साथ अभिभावक की तरह जुड़े रहकर पढ़ाया, बोर्ड परीक्षाएं रद्द होने के फैसले पर उनका क्या मानना और कहना है… ये भी जानना जरूरी है।
भारत खबर से शिक्षकों की खास बातचीत
भारत खबर के संवाददाता शैलेंद्र सिंह ने कुछ अध्यापकों से बोर्ड परीक्षाओं के रद्द होने को लेकर बाचतीत की। इसमें कुछ अध्यापकों ने जहां फैसले को सही करार दिया तो कुछ अध्यापकों का मानना है कि प्लान करके बोर्ड परीक्षाएं करानी चाहिए थीं।
‘कोरोना महामारी से जिस तरह के हालात हैं, ऐसे में सरकार का फैसला तो सही है। लेकिन, इससे पढ़ाई में अच्छे बच्चों को नुकसान भी होगा, चाहे वो सीबीएसई बोर्ड का बच्चा हो चाहे आईसीएसई बोर्ड का। जो बच्चे वीक हैं, जो एवरेज हैं और जो पढ़ाई में काफी अच्छे हैं, अब सब एक लाइन में आ जाएंगे। जो बच्चे जी जान लगाकर पढ़ते हैं और 90+ स्कोर ला सकते हैं और जिनके मार्क्स कम आते हैं, अब उनके बीच का गैप कम हो जाएगा। बोर्ड अगर बच्चों की पिछले साल की परफॉर्मेंस के आधार पर बच्चों के रिजल्ट तैयार करेंगे तो ऐसे में कई स्कूल लॉस में जा सकते हैं। बोर्ड को चाहिए कि स्कूल के पिछले 4-5 सालों के रिजल्ट के आधार पर ही नए रिजल्ट बनाएं।’
-राजीव सिंह, जयपुरिया स्कूल, लखनऊ
‘अध्यापकों की मेहनत और उनके द्वारा दिया जा रहा ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता। लेकिन टैलेंटेड बच्चे थोड़ा चिंतित हैं क्योंकि उन्हें परसेंटेज को लेकर संशय है। हां, अगर परीक्षाएं होतीं तो ज्यादा सही रहता क्योंकि इससे वीक और टैलेंटेड बच्चों का मूल्याकंन आसानी से किया जा सकता है। अब जो रिजल्ट तैयार किया जाएगा, उसमें वीक और टैलेंडेट बच्चों में अंतर कम हो जाएगा जो गलत है। बोर्ड्स अधिकारियों को चाहिए कि रिजल्ट तैयार करने के लिए एक कमेटी बनाई जाए, जिसमें स्कूल के अध्यापकों को भी शामिल किया जाए। उनसे उनके विचार और बच्चों के बारे में पढ़ाई से संबंधित व्यूज लिए जाएं, ये बच्चों और अध्यापकों दोनों के हित में है।’
-तालिब जैदी, शिया इंटर कॉलेज, लखनऊ
‘कोरोना को देखते हुए सरकार का निर्णय सही है। बच्चों की पढ़ाई और करियर तो जरूरी है, लेकिन उससे पहले उनका स्वास्थ्य और जीवन जरूरी है। बोर्ड बच्चों के पिछले साल के रिजल्ट के आधार पर छात्रों के इस साल के रिजल्ट तैयार करे तो यह सभी और छात्रों के हित में है।’
-सुमित यादव, जुबली इंटर कॉलेज, लखनऊ
‘अध्यापकों ने बच्चों को मार्च से लेकर मई अंत तक पढ़ाया और बच्चों ने भी मेहनत से पढ़ाई की। उनके अंदर जो कंप्टीशन की ललक और अच्छे नंबर लाकर हैप्पीनेश की जो फीलिंग होती है, एग्जाम कैंसिल होने से वो खत्म हो गई। अगर बोर्ड हाईस्कूल और प्री-बोर्ड के आधार पर रिजल्ट तैयार करने की तैयारी में है तो यह सही नहीं है क्योंकि पहले बच्चों के परफॉर्मेंस और अब तैयारी करके परफॉर्मेंस में काफी अंतर होगा। आइएससी चाहता तो दो से तीन शिफ्ट में परीक्षाएं कराई जा सकती थीं, लेकिन एग्जाम कैंसिल करना सही नहीं है।’
-सुबिना चोपड़ा, निदेशक, आर्यन इंटरनेशनल स्कूल, वाराणसी
‘मैं परीक्षाएं रद्द करने पर सहमत नहीं हूं। बोर्ड एग्जाम होने चाहिए थे। अध्यापकों और बच्चों ने इसके लिए काफी मेहनत की है। सरकार ने बिना सोचे-समझे निर्णय लिया। प्लान करके शिफ्ट में बच्चों के एग्जाम कराए जा सकते थे। रिजल्ट हाईस्कूल और प्री-बोर्ड के आधार पर ऑनलाइन बनाना सही नहीं है बल्कि बच्चों के ऑफलाइन एग्जाम कराए जाने चाहिए थे। जब धीरे-धीरे लॉकडाउन खेाला ही जा रहा है तो बच्चों के एग्जाम भी कराए जा सकते थे।’
–विनीत चोपड़ा, चेयरमैन, आर्यन इंटरनेशनल स्कूल, वाराणसी