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तलवार दंपत्ति की मुश्किले बढ़ी, सुप्रीम कोर्ट में हेमराज की पत्नी की याचिका स्वीकार

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 नई दिल्ली। साल 2008 के चर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड मामले में तलवार दंपति की मुश्किले फिर से बढ़ गई है। दरअसल हेमराज की पत्नी खुमकला बेंजाडे ने राजेश तलवार और नुपुर तलवार को बरी करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी,जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। बता दें कि सीबीआई ने भी सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, लेकिन उसमें कुछ खामिया होने के चलते उसे रद्द कर दिया गया था, लेकिन अब कोर्ट ने हेमराज की पत्नी की याचिका को स्वीकार कर लिया है। मालूम हो की पिछले साल दिसंबर में तलवार दंपत्ति को बरी करने के फैसले के खिलाफ हेमराज की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें खुमकला ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार दिया था क्योंकि हाईकोर्ट ने इसे हत्या तो माना था, लेकिन इसके पीछे किसी को दोषी नहीं ठहराया था।
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हाई कोर्ट के फैसले से भी ये साफ जाहिर है कि दोनों को किसी ने मारा था, जबकि ऐसे में ये जांच एजेंसी की ड्यूटी है कि वो हत्यारों का पता लगाए। हेमराज की पत्नी ने अपनी याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट आखिरी बार देखे जाने की थ्योरी पर विचार करने में नाकाम रहा है जबकि इस बात के ठोस सबूत थे कि एल-32 जलवायु विहार में नुपुर तलवार और राजेश तलवार मरने वालों के साथ ही मौजूद थे। इसकी पुष्टि के लिए उनके ड्राइवर उमेश शर्मा ने कोर्ट के सामने बयान भी दिए।  हाईकोर्ट इस तथ्य पर भी विचार करने में नाकाम रहा कि ऐसा कुछ नहीं है जो ये दिखाता हो कि रात 9.30 बजे के बाद कोई बाहरी घर के अंदर आया हो और न ही इस बात का प्रमाण है कि कोई संदिग्ध परिस्थितियों में फ्लैट के आसपास दिखाई दिया हो।

15 मई- 16 मई 2008 की रात को ड्यूटी पर तैनात चौकीदार ने भी ये ही बयान दिए थे। याचिका में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ने ये सही पाया था कि इतने कम वक्त में किसी के घर में घुसने का सवाल ही पैदा नहीं होता। आपको बता दें कि 12 अक्तूबर 2017 को हत्या केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट से आरुषि के पिता डॉ राजेश तलवार और मां डॉ नुपूर तलवार को बड़ी राहत मिली थी। हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट का फैसला पलटते हुए दोनों को बरी कर दिया था। ये फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि मौजूदा सबूतों के आधार पर तलवार दंपत्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ऐसे सबूत हों तो सुप्रीम कोर्ट भी इतनी कठोर सजा नहीं सुनाता।

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