लखनऊ। सुवर्ण प्राशन के सेवन से केवल कोरोना ही नहीं बल्कि किसी भी प्रकार के संक्रमण को रोकने की क्षमता विकसित होती है। यह मेधा (बुद्धि), अग्नि (पाचन अग्नि) और बल बढ़ाने वाला है। यह लंबी आयु, कल्याण कारक, पुण्य कारक, वर्ण (तेज बनाने वाला) और ग्रह पीड़ा को दूर करने वाला है। इसके नित्य सेवन से बच्चा बुद्धिमान बनता है और रोगों से रक्षा होती है। यह जानकारी आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. एसपी चौहान ने दी।
डा. चौहान ने बताया कि सुवर्ण-प्राशन एक आयुर्वेदीय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की विधि है। जिस प्रकार एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार आयुर्वेद में इसका उपयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह शुद्ध स्वर्ण, गाय का घी, शहद, अश्वगंधा, ब्राह्मी, गिलोय, शंखपुष्पी जैसी औषधियों से निर्मित किया जाता है। इस दवा की चंद बूदें ही बच्चों को पिलाई जाती है। छह महीने से लेकर 16 साल तक के बच्चों को यह दवा पुष्य नक्षत्र में पिलाई जाती है। सुवर्ण प्राशन का असर बच्चे में चार महीने में ही दिखने लगता है।
डॉ. एसपी चौहान ने बताया कि आयुर्वेद में महर्षि कश्यप को शिशु रोग विशेषज्ञ माना गया है। उन्होंने ही सुवर्ण-प्राशन इजाद किया। इसके महत्व को देखते हुए इसे 16 संस्कारों में से एक संस्कार भी माना जाता है। सुवर्ण-प्राशन के महत्व के बारे में कश्यप संहिता में उल्लेख किया गया है।