नई दिल्ली। सतलुज-यमुना लिंक नहर से जल के बंटवारे के विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए पंजाब सरकार को जोरदार झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नहर पर निर्माण कार्य को जारी रखा जाएगा।
आपको बता दें कि इस विवाद पर 2004 में राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी गई थी, इस बाबत न्यानमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पंजाब सरकार एसवाईएल समझौते को रद्द नहीं कर सकती है, इसके साथ ही नहर की जमीनों को किसानों को देना गलत है।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पूरी तरह से असंवैधनिक है और इसे माना नहीं जा सकता है अतः सतलुज यमुना लिंक नहर को बनाया जाए। पंजाब सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब सरकार को अधिकार नहीं है कि वह एकतरफा कानून बनाए और राज्यों के बीच जल समझौते को रद्द कर दे।
क्या है सतलुज-यमुना लिंक केस- आपको बता दें कि सतलुज-गंगा विवाद पंजाब के पुनर्गठन के साथ ही वर्ष 1966 में शुरु हुआ। इसमें सतलुज, रावी और व्यास नदियों के जलों में बंटवारे के लिए वर्ष 1976 में केंद्र सरकार ने नोटीफिकेशन जारी किया था, पंजाब सरकार ने इस नोटीफिकेशन को अस्वीकार करते हुए इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। वर्ष 1981 में पंजाब सरकार ने अपने इस फैसले को वापस ले लिया था। बाद में अकाली दल ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक साल बाद 1982 में नहर की नींव रखी, जिसे वर्ष 1990 में नहर का हिस्सा बनकर तैयार हुआ था, साल 2002 में नहर के बाकी हिस्से को तैयार करने के निर्देश जारी किए गए थे। नहर के इस विवाद को लेकर पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट 2004 पास किया गया, इस फैसले को तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति की राय के लिए भेजा, बाद में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट ने संविधान बेंच को भेजा दिया। हुड्डा सरकार ने अपील पर सुप्रीम कोर्ट में इसकी फिर से सुनवाई हुई जिसमें पंजाब कैबिनेट ने नहर पर खर्च हरियाणा का पैसा लौटाने का फैसला किया, साथ ही फैसला किया गया कि जिन लोगों से जमीन ली गई उन्हें जमीन वापस लौटाने के लिए कहा गया।