नई दिल्ली। देश में आए दिन विवादस्पद कार्य आए दिन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जाते रहते हैं। जिसके चलते इनमें कुछ मामले धर्मो से भी जुड़े हुए होते हैं। क्योंकि सभी को धर्म के आड़े आने पर सबको सामान न्याय नहीं मिल पाता है। जिसके चलते अब सभी धर्मों के लिए स्पष्ट उत्तराधिकार कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं के लिए बच्चा गोद लेने से जुड़ा कानून बिल्कुल स्पष्ट है। बच्चे को माता-पिता की संपत्ति पर प्राकृतिक संतान की तरह ही अधिकार मिलता है। लेकिन मुसलमान, ईसाई, पारसी जैसे धर्मों के लिए कोई कानून नहीं बना है।
धर्म के मुताबिक बनी अलग व्यवस्था मौलिक अधिकारों का हनन है-
बता दें कि 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने देश में तलाक के लिए एक समान आधार तय किए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था। उसी दिन कोर्ट ने वैवाहिक विवाद की स्थिति में गुजारा भत्ते की एक जैसी व्यवस्था की मांग पर भी सरकार से जवाब मांगा था। दोनों मामलों पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की मांग से पर्सनल लॉ पर असर पड़ता है। इसलिए सावधानी से विचार करना होगा। इसके साथ ही दिसंबर में जिन 2 याचिकाओं पर आज कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था, वह बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की हैं। पहली याचिका में तलाक का मसला उठाते हुए कहा गया था कि तलाक हासिल करने का आधार एक समान होना चाहिए। धर्म के मुताबिक बनी अलग व्यवस्था मौलिक अधिकारों का हनन है। पति के दूसरी शादी करने पर हिंदू महिला तलाक ले सकती है, लेकिन मुस्लिम महिला नहीं। यह मुस्लिम महिला के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव है।
तीनों याचिकाओं पर एक साथ होगी सुनवाई-
वहीं दूसरे मामले में दूसरे मामले में कोर्ट को बताया गया था कि वैवाहिक विवाद के दौरान और तलाक के बाद महिला को क्या भत्ता मिलेगा, इस पर देश मे अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। एक मुस्लिम महिला को सिर्फ तलाक प्रक्रिया के दौरान के समय यानि 3 महीनों तक गुजारा मिलता है। तलाक के बाद सिर्फ मेहर की रकम मिलती है, जो निकाह के समय दोनों परिवारों ने तय की होती है। यह न सिर्फ महिला, बल्कि उसके बच्चों के अधिकारों का भी हनन है। जिसके चलते इसी बीच एक और याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं के लिए बच्चा गोद लेने से जुड़ा कानून बिल्कुल स्पष्ट है। लेकिन मुसलमान, ईसाई, पारसी जैसे धर्मों के लिए कोई कानून नहीं बना है। जिसके चलते कोर्ट ने आज कहा कि इस मामले की सुनवाई भी तलाक और गुजारा भत्ता के लिए समान नीति की मांग करने वाली याचिकाओं के साथ होगी।