एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर ने CJI जस्टिस दीपक मिश्रा को खत लिखकर हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप पर फुल कोर्ट(पूर्ण पीठ) द्वारा चर्चा करने को कहा है। जस्टिस चेलामेश्वर ने पिछले हफ्ते मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था। 21 मार्च को जज ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इसके साथ ही उन्हेंने पांच पृष्ठों की प्रति शीर्ष अदालत के 22 अन्य जजों को भी भेजी है। जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने अबी तक कोई जवाब नहीं दिया है।
जस्टिस ने अपने खत में सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए लिखा है कि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर सरकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है। सरकार को जिसका नाम असुविधाजनक लगता है उसे या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या फिर टाल दिया जाता है। ऐसे में न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है, लिहाजा मौजूदा परिस्थिति पर फुल कोर्ट (पूर्ण पीठ) द्वारा विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। इसमें अदालत के अधिकांश जज शामिल होते हैं।
दरअसल यह पूरा मामला कर्नाटक के बेलगावी में जिला और सेशन के जज पी.कृष्ण भट से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जज भट की हाई कोर्ट में नियुक्ति को 2016 में मंजूरी दी थी लेकिन एक दीवानी जज के गंभीर आरोप लगाने के बाद इस पर रोक लगा दी गई थी। साल 2014 में जज भट ने जुडिशियल मजिस्ट्रेट एमएस शशिकला के दुर्व्यवहार के संबंध में रिपोर्ट भेजी थी। इस पर लविजिलेंस रिपोर्ट तो दाखिल की गई लेकिन फरवरी 2016 तक इश पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
जब जज भट का नाम प्रमोशन के लिए आगे बढ़ाया गया तो शशिकला ने उनके खिलाफ शिकायत कर दी। चीफ जस्टिस एसके मुखर्जी ने जब इन आरोपों की जांच की तो उन्होंने इन्हें बेबुनियाद करार दिया। इसके बाद जज भट समेत छह जोजों का नाम हाई कोर्ट जज बनाए जाने के लिए सुझाए गए लेकिन केंद्र सरकार ने जज भट के अलावा अन्य सभी जजों की नियुक्ति का समर्थन किया। जज चेलमेश्वर ने अपने खत में केंद्र सरकार के अपने हितों के कारण ‘फाइल को रोके रखने’ का आदर्श उदाहरण बताया है।
जस्टिस चेलमेश्वर लिखते हैं “अब वो हो गया है जिसके बारे में कभी सोचा नहीं गया था। सरकार को यदि जज कृष्ण भट के बारे में कोई आपत्ति थी तो उन्हें इस सिफारिश को हमारे पास वापस भेजना चाहिए था- जैसा कि समान्य प्रक्रिया है। इसके बजाए उन्होंने फाइल को रोक कर रख लिया।” उन्होंने आगे लिखा, “लेकिन अब कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने हमें बताया है कि उन्हें इस मामले में ग़ौर करने के लिए कानून मंत्रालय ने ख़त लिखा है और मुख्य न्यायाधीश ने, ख़ुद को सरकार का वफादार दिखाते हुए, इस पर कदम उठाया, प्रशासनिक कमेटी की बैठक की और इस मुद्दे की दोबारा जांच का फ़ैसला किया। और इस तरह उन्होंने पहले चीफ़ जस्टिस की जांच में सामने आए नतीजों को दबा दिया…..”
गौरतलब है कि 12 जनवरी को जस्टिस चेलमेश्वर के समेत जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए थे।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने चारों वरिष्ठतम जजों की इस बात को लेकर कड़ी आलोचना की थी कि ऐसा करने से पहले उन्होंने अन्य जजों को विश्वास में नहीं लिया था। इस बार जस्टिस चेलामेश्वर ऐसे किसी विवाद से बचने के लिए पत्र की प्रति अन्य जजों को भी प्रेषित किया है। बता दें कि जस्टिस चेलामेश्वर ने ऐसे समय में सीजेआई को पत्र लिखा है, जब विपक्षी पार्टियां मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रही हैं।