नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुनवाई पूरी हो गई है। कोर्ट ने आधार मामले में अपना फैसला 4 महीने 38 दिन के लिए सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत पांच जजों की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल वेणु गोपाल ने कहा कि केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में आधार केस ऐसा दूसरा मामला है, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में इतने लंबे समय तक चली है।
कोर्ट में केके ने केंद्र का पक्ष रखा जबकि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, राकेश द्विवेदी, श्याम दीवान ने पक्षकारों की तरफ से मत पेश किया। आपको बता दें कि आधार की संवैधानिक वैधता की चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई थीं। आधार का मुद्दा देशभर में काफी चर्चा में रहा है। कोर्ट मे सुनवाई के दौरान डेटा की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठे। सुनवाई के दौरान केंद्र ने आधार को मोबाइल फोन से लिंक कराने के अपने फैसले का मजबूती से बचाव किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल फोन को आधार से अनिवार्य रूप से जोड़ने के सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मोबाइल यूजर्स के अनिवार्य सत्यापन पर उसके पिछले आदेश को ‘हथियार’ के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस बात की भी आशंका जताई गई कि आधार के लिए ली गई जानकारी कितनी सुरक्षित है? 18 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आधार डेटा लीक होने से चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि आधार के लिए लिया जाने वाला डेटा सुरक्षित है, यह कहना मुश्किल है क्योंकि देश में डेटा सुरक्षा को लेकर कोई कानून मौजूद नहीं है।
बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि अगर आधार डेटा का इस्तेमाल चुनाव नतीजों को प्रभावित करने में होगा तो क्या लोकतंत्र बच पाएगा। गौरतलब है कि पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में फेसबुक डेटा के अवैध तरीके से इस्तेमाल का मुद्दा भी छाया रहा था। यूआईडीएआई की ओर से कहा गया है कि ‘बायोमेट्रिक डेटा किसी के साथ शेयर नहीं किया जाता है। जिसका आधार है उसकी सहमति के बिना ये किसी को नहीं दिया जाता।