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Women’s Day-2021: वक्त की धूप में खुद को किया साबित, अब हुनरमंद बेटियों को दे रहीं ममता की छांव

वक्त की धूप में खुद को साबित करने के बाद हुनरमंद बेटियों को दे रहीं ममता की छांव

लखनऊ। मुश्किल और असंभव । उत्तर प्रदेश की बेटी ममता शुक्ला की डिक्शनरी में ये दो शब्द ही नहीं हैं। एक सामान्य महिला से नामी बिजनेस वूमन बनीं ममता ने अपने हौसले के दम पर तमाम डिग्रियों को पीछे छोड़ दिया। संघर्षों की कठिन डगर पर चलकर खुद को साबित करने वाली ममता अब गरीब और हुनरमंद बेटियों का भविष्य संवारने में जुटी हैं।

कानपुर की ममता शुक्ला की कहानी साधारण महिलाओं जैसी ही है, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से असाधारण बना दिया। कन्नौज की ममता की शादी उस वक्त हो गई जब वो हाईस्कूल में थीं। ममता एग्जाम के बाद शादी करना चाहती थीं। मगर घरवाले इसके लिए राजी नहीं हुए।

वक्त की धूप में खुद को साबित करने के बाद हुनरमंद बेटियों को दे रहीं ममता की छांव

शादी हुई तो ममता के एग्जाम छूट गए। शादी के कुछ समय बाद ससुर जी को यह बात पता चली तो उन्होंने ममता को हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की रेगुलर पढ़ाई कराई। इंटरमीडिएट के बाद उनकी जिंदगी घर, परिवार और बच्चों के बीच सिमट गई। एक अच्छी हाउसवाइफ की तरह उन्होंने घर परिवार की जिम्मेदारियों को हमेशा बहुत अच्छे से निभाया और अब तक निभाती चली आ रही हैं।

 

बच्चों की परवरिश करते-करते समझा दवा का कारोबार

ममता के ससुर वैद्य रवि दत्त शुक्ला और पति डॉ. प्रदीप शुक्ला कानपुर में होम्योपैथी का जाना-माना नाम हैं। बच्चों की परवरिश करते-करते ममता ने दवाओं के काम को करीब से जाना-समझा। 1988 में उनके पति ने पारुल होम्यो लैब नाम से होम्योपैथिक दवाओं की फैक्ट्री शुरू की। फैक्ट्री खुलते वक्त ममता नहीं जानती थी कि उनकी जिंदगी पूरी तरह बदलने जा रही है। आने वाला वक्त उनके लिए बड़ी चुनौती लेकर आ रहा था।

 

सासू मां ने ममता को दी डूबती फैक्ट्री बचाने की जिम्मेदारी

दवाओं के कारोबार और बाजार से शुक्ला परिवार को वह रेस्पांस नहीं मिला जिसकी वह उम्मीद कर रहे थे। 1992 में प्रदीप शुक्ला की दवा फैक्ट्री कर्ज के बोझ तले दब गई। फैक्ट्री को सिक यूनिट करार दे दिया गया। परिवार पर अचानक कर्ज का भारी बोझ आ पड़ा। हालात कुछ ऐसे हो गए कि उनसे पार पाना थोड़ा मुश्किल लगने लगा।

 

फैक्ट्री चलाने की कोशिशें करके जब हर कोई थक गया तो सास ने ममता को फरमान सुनाया-बहू तुम बाहर निकलो, जाओ फैक्ट्री का काम संभालो। बाजार और कारोबार की दुनियावी जानकारी से अंजान ममता तेज कदमों से फैक्ट्री की तरफ चल पड़ीं। उन सारी मुश्किलों से जूझने के लिए जिनका अब तक उनसे कभी पाला नहीं पड़ा था।

वक्त की धूप में खुद को साबित करने के बाद हुनरमंद बेटियों को दे रहीं ममता की छांव

सूझबूझ से डूबती फैक्ट्री को जिंदा किया ममता ने

ममता के लिए कुछ भी बहुत आसान नहीं था। बैंक वाले और दूसरे कर्जदार दरवाजे पर खड़े थे। हर कोई धमका रहा था। ममता ने अपनी सूबझूझ से सबसे पहले खराब स्थिति संभाली। इसके बाद उन्होंने फैक्ट्री के प्रोडक्ट की मार्केट रिसर्च शुरू की। डॉक्टरों के पास गईं। उनसे पूछा कि कैसा प्रोडक्ट चाहिए। बाजार की जरूरतों के हिसाब से प्रोडक्ट तैयार किए। तमाम जगह सैंपल पहुंचाए। इन सारी कोशिशों के बीच फैक्ट्री को नए ऑर्डर मिलने शुरू हो गए और थमा हुआ बिजनेस चलने लगा।

मैंने हाईस्कूल का फॉर्म भरा था। पिताजी ने मेरी शादी तय कर दी। मैं चाहती थी कि पेपर देने के बाद शादी करूं। मगर ऐसा नहीं हुआ। शादी हो गई और पेपर छूट गए। बाद में यह बात मेरे ससुर जी को पता चली तो उन्होंने मुझे आगे बढ़ाया। मैंने इंटर तक रेगुलर पढ़ाई की। उस वक्त मैंने सोचा ही नहीं था कि मैं एक बिजनेस वूमन बनूंगी

हाईटेक्स के आइडिया से कारोबार को लगे पंख

ममता की दिन रात की मेहनत से उनकी फैक्ट्री घाटे से उबरकर पटरी पर लौट आई। इसी बीच उनका ध्यान समाज की एक छोटी सी दिक्कत पर गया। वह थी कम लंबाई। लंबाई कम होने के कारण उन्होंने तमाम लोगों के रिश्ते टूटते देखे थे। ऐसे में उन्होंने हाईटेक्स के नाम से लंबाई बढ़ाने की दवा बाजार में उतारी। यहीं से उनके सपनों को पंख लगने शुरू हो गए। बाजार में उनकी दवा खूब पसंद की गई। कंपनी को मुनाफा हुआ और पारुल होम्यो लैब होम्योपैथिक दवाओं की बड़ी ब्रांड बन गई।

 

कानपुर के बाद पूरे देश में तैयार किया बाजार

कानपुर में लंबे समय तक अपनी कंपनी के उत्पाद बेचने के बाद उन्होंने सबसे पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश की ओर रुख किया। इसके बाद पश्चिमी यूपी और फिर देखते-देखते देश के तमाम राज्यों तक उनका कारोबार फैल गया। पारुल होम्यो लैब अब देश की जानमानी होम्योपैथिक उत्पाद बनाने वाली कंपनी है।

मेरी जिंदगी सामान्य महिलाओं की जैसी ही थी। घर-परिवार, बच्चों और घर की चाहरदीवारी के बीच सिमटी हुई। जब भी वक्त मिलता मैं परिवार के बिजनेस को समझने की कोशिश करती। अपने ढंग से यह समझती कि कौन सी चीज कहां कैसे हो रही है, उसमें बेहतर क्या हो सकता है। ईश्वर शायद आने वाले वक्त के लिए मुझे तैयार करना चाहते थे।

लोग ताने न दें इसलिए बेटे को साथ लेकर जाती थीं

ममता कहती हैं, मेरे लिए फैक्ट्री में काम करना और फैक्ट्री के उत्पादों के लिए बाजार तलाशना आसान नहीं था। हर तरफ से तानों की बौछार होती थी। लोग तरह-तरह की बातें करते थे। कई बार काम करना इतना मुश्किल हो जाता कि मुझे अपने बड़े बेटे को साथ लेकर जाना पड़ता। सुबह से शाम तक दोनों मां-बेटे तमाम जगह भटकते थे। हमारी दिनरात की मेहनत ने हमारे लिए कामयाबी के दरवाजे खोले।

 

परिवार पहली प्राथमिकता

ममता शुक्ला के लिए उनका परिवार पहली प्राथमिकता है। परिवार में बेटे अमित शुक्ला, सुमित शुक्ला और बेटी पारुल शुक्ला हैं। पारुल के नाम पर ही उनका कारोबार भी है। कहती हैं, आप कुछ भी करें, लेकिन पहली प्राथमकता आपका परिवार ही होना चाहिए। अच्छा परिवार आपके लिए हर कदम पर तरक्की के रास्ते खोलता है।

 

गरीब बेटियों को आगे बढ़ाने की मुहिम में जुटी हैं ममता

ममता शुक्ला गरीब बच्चों को आगे बढ़ाने की मुहिम में जुटी हैं। कहती हैं, आईआईए से जुड़ने के बाद हमने हुनरमंद बेटियों को आगे बढ़ाने की मुहिम शुरू की है। मैं अपने स्तर पर बेटियों की हर संभव मदद करती हूं। अपने उद्यम लगा रही और अपना कारोबार करने की तैयारी कर रही महिलाओं को कहीं परेशान न होना पड़े, इसके लिए मैं खुद कोशिश करती हूं। कहीं मदद की जरूरत होती है तो मैं दौड़कर वहां पहुंचती हूं।

मैं जब बिजनेस संभालने के लिए घर से बाहर निकली तो तानों की बाढ़ आ गई। ब्राह्मण परिवार की बहू, दवाओं का बिजनेस, मैन्युफेक्चरिंग, मार्केटिंग। मेरी जिंदगी में सबकुछ बदल गया था। अब मुझे खुद को साबित करना था इसलिए मैंने कान बंद कर लिए और बिजनेस पर पूरा ध्यान लगाना शुरू कर दिया। मैंने एक-एक चीज को खुद समझा। बाजार की जरूरतों के हिसाब से दवाएं बनाईं और घाटे में जा रही फैक्ट्री चल पड़ी।

आईआईए में निभा रही हैं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी

ममता शुक्ला आईआईए में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रही हैं। उनके पास राष्ट्रीय सचिव का पद है। वह कानपुर के दूसरे अहम महिला संगठनों में भी सक्रिय हैं। वह  महिला उद्यमियों के लिए उद्योगों की राह आसान करने की कवायद में जुटी हैं।

 

जीवन में एक बात याद रखें-कोई काम छोटा नहीं होता

जीवन में एक बात याद रखें। कोई काम छोटा नहीं होता। हर काम के रूप में आपको एक अवसर, एक चुनौती मिलती है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उस चुनौती को स्वीकार करते हैं या यूं ही जाने देते हैं। अगर आप एक बार चुनौती स्वीकार करने की हिम्मत जुटा लेते हैं तो आपकी जिंदगी में बहुत कुछ बदल सकता है।

 

मेरे लिए कुछ भी आसान नहीं था। समाज की बंदिशों के बीच बिजनेस के लिए घर से बाहर निकलना बहुत बड़ी चुनौती थी। मगर, मेरा लक्ष्य स्पष्ट था। मुझे अपने परिवार को आर्थिक खतरों से बाहर निकालना था। अपने डूबते बिजनेस को बचाने के लिए मैं पूरे दमखम से बाजार में डट गई। लंबी कोशिशों के बाद मैं कामयाब हो गई। वो कहते हैं न- अंत भला तो सब भला।

 

वक्त की धूप में खुद को साबित करने के बाद हुनरमंद बेटियों को दे रहीं ममता की छांव

ममता शुक्ला की बातें जो जीवन में आपको बनाएंगी कामयाब

1-कोई भी बिजनेस शुरू करने से पहले उसके बारे में ठीक से जांच पड़ताल कर लें। बिजनेस प्लान, फाइनेंस, मार्केटिंग, सेल हर पहलू पर गंभीरता से काम किया जाना जरूरी है।

2-आपका बिजनेस जो प्रोडक्ट तैयार करेगा, उसके लिए बाजार में कितनी संभावनाएं हैं। यह जान लें। सबसे अधिक वक्त प्लानिंग और मार्केट रिसर्च को दें। यहां की गई एक चूक आपके लिए मुसीबत बन सकती है।

3-मार्केटिंग और रिसर्च के काम में टीम के भरोसे न रहें। बीच-बीच में खुद भी जमीनी हालात परखें। जानने की कोशिश करें कि टीम जो बता रही है वह सच है या बाजार कुछ और ही चाहता है।

4-प्रोडक्शन टीम के साथ भी अच्छे से शामिल हों। यह ठीक से जान लें कि कच्चे माल से लेकर प्रोडक्ट तैयार करने और पैकेजिंग तक का पूरा प्रॉसेस क्या है। रोजाना वक्त निकालकर काम की बारीकियों को सीखें। ऐसा करना आपको परिपक्व बिजनेसमैन बना देता है।

5-अपने प्रोडक्ट को लोगों तक लेकर आएं। उन्हें बताएं कि आप क्यों बेहतर हैं। मार्केटिंग के बेहतरीन तरीके चुनें और अपने प्रोडक्ट को लोगों की जरूरत और आदत में शामिल करें।

6-बाजार की जरूरतों के मुताबिक नए प्रयोग करते रहें। यह जानने की कोशिश करें कि लोग क्या चाह रहे हैं। अगर आप ऐसा प्रोडक्ट उतारते हैं जो लोगों की जरूरत बन जाए तो आपकी सफलता की राह थोड़ी आसान हो जाती है। बस एक बात याद रखें, क्वालिटी और ईमानदारी से कभी समझौता न करें।

जिंदगी में कुछ भी तय नहीं है। आपके हाथ में सिर्फ एक चीज है वह है आपका कर्म। आप उसे पूरी ईमानदारी से कीजिए। ऐसा करने वाला का भगवान साथ देता है और कोशिशों के बाद सफलता मिल ही जाती है। हालात कैसे भी हों, आपको निराश होकर नहीं बैठना चाहिए। याद रखिए, जिंदगी का दूसरा नाम है चलते रहना। जो ठहर जाते हैं वो कहीं नहीं पहुंच पाते।

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