“जय जवान जय किसान” एक ऐसा नारा है जो जब दिया गया था तब से लेकर आज तक लगातार कहीं ना कहीं सुनने को मिल जाता है. कभी कोई प्रधानमंत्री “जय जवान ,जय किसान, कहता है तो कभी कोई इन नारे को बोलकर हमारे देश में किसान और जवान की महत्वता को बताया है. “जय जवान जय किसान” का नारा भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था.
लेकिन अगर आपको ‘जय जवान-जय किसान’ की झलक एक साथ देखनी हो तो राजस्थान के बीकानेर जिले के खाजूवाला चले आइए. यहां के ओमप्रकाश बिश्नोई ने पहले भारतीय वायुसेना ज्वाइन कर देश सेवा की और फिर रिटायरमेंट के बाद किसान बन गए. अब खेती से छप्परफाड़ कमाई कर रहे हैं.
इंडियन एयरफोर्स से खेती तक का सफर
ओमप्रकाश बिश्नोई ने इंडियन एयरफोर्स में सेवाएं देने से लेकर राजस्थान के धोरों में जैतून की खेती करने तक लंबा सफर तय किया है. ओम प्रकाश बिश्नोई ने बताया कि उन्होंने डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी लाकर अपनी बंजर पड़ी 30 बीघा जमीन को ‘सोना’ बना दिया है.
कौन हैं ओमप्रकाश बिश्नोई
ओमप्रकाश बिश्नोई बीकानेर के खाजुवाला इलाके चक आठ एसएसएम गांव के रहने वाले है. वो भारतीय वायुसेना में सीनियर नॉन कमिशनड ऑफिसर के पद कार्यरत थे. बिश्नोई साल 1988 में रिटायर हो गए और फिर ओरिएंटल इंश्योरेंस कम्पनी ज्वाइन की. साल 2015 में वहां से भी रिटायर हो गए. फिर इन्होंने गांव में बंजर पड़ी जमीन की सुध लेने का सोचा.
ऐसे बन गये किसान
रिटायरमेंट के बाद ओमप्रकाश बिश्नोई ने तय कि वो अपनी तीस बीघा जमीन में जैतून की खेती करेंगे. ओम प्रकाश बिश्नोई ने बताया की खेती करने के लिए उन्हें काफी मशक्त करनी पड़ी. जमीन के चारों तरफ जंगल और मिट्टी के टीले थे. जमीन भी उबड़ खाबड़ थी. सिंचाई का कोई साधन नहीं था. इसके लिए उन्होंने अपने परिवार में बेटे और बेटी के साथ मिलकर सबसे पहले जमीन को समतल किया.
खेत से डेढ़ किलोमीटर दूर जाकर लाते थे पानी
जमीन तो समतल हो गई लेकिन अब समस्या थी पानी. बिश्नोई ने फिर नलकूप करवाया, मगर यहां की जमीन से पानी खारा निकला, जिससे खेती करना संभव नहीं था. ऐसे में खेत से डेढ़ किलोमीटर दूर चक 7 एसएसएम गांव के जगदीश प्रसाद चौहान के खेत में नलकूप करवाकर पाइप के जरिए पानी अपने खेत में लेकर आए.
फिर शुरू की जैतून की खेती
ओमप्रकाश बिश्नोई ने बताया कि जमीन को खेती लायक बनाने और पानी की उपलब्धता होने के बाद जयपुर से जैतून के करीब 35 सौ पौधे लेकर आए. तीस बीघा जमीन में सात सात फीट की दूरी पर पौधे लगाए और फिर बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पानी देना शुरू किया. सार संभाल के लिए दो व्यक्ति भी रखे. पूरी प्रक्रिया करने में करीब दस लाख रुपए खर्च हुए.
बिश्नोई ने बताए जैतून के फायदे
ओम प्रकाश बिश्नोई ने बताया कि जैतून के पौधे के बेर से थोड़े आकार के फल लगते हैं जिनमें तेल निकलता है. ऑलिव ऑयल काफी उपयोग में लिया जाता है। इसमें कुछ ऐसे यौगिक होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में मददगार साबित हो सकते हैं। यह कब्ज में काफी फायदेमंद है क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में मोनोअनसैचुरेटेड फैट होता है। जैतून का तेल विटामिन-ई, विटामिन के, आयरन, ओमेगा-3 व 6 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। मधुमेह के मरीजों के लिए भी लाभकारी है.
‘हर साल 15 लाख की कमाई की उम्मीद’
ओमप्रकाश बिश्नोई बताते हैं कि जैतून के पौधे कई दशक तक जीवित रहते हैं. शुरुआत के पांच साल तक इनसे कोई कमाई नहीं होती है. साल 2015 में लगाए पौधों से अब 2020 से कमाई शुरू हो गई. लूणकरणसर स्थित जैतून रिफाइनरी में हमारे यहां से माल जाने लगा है. अब उम्मीद है कि तीस बीघा में खड़े जैतून के पोधों से हर साल 15 लाख की कमाई हो सकती है.