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इस वजह से मनाया जाता है हर साल रक्षा बंधन, ये कहानियां ये प्रचलित

भाई बहन के अटूट प्रेम को समर्पित इस वजह से मनाया जाता है हर साल रक्षा बंधन, ये कहानियां ये प्रचलित

नई दिल्ली।  बहन और भाईयों के पवित्र और अटूट प्रेम पर आधारित रक्षा बंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को राखी बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा का उन्हें वचन देते हैं। इस बार रक्षा बंधन का त्यौहार 26अगस्त को मनाया जा रहा है। रक्षा बंधन के पवित्र त्यौहार का चलन सदियों पुराना है। हिंदू धर्म में इस त्यौहार का काफी महत्व होता है। इसकी तैयारियां काफी पहले से ही शुरू हो जाती हैं। भारत में इसे काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। आज हम आपको इस त्यौहार को मनाने के पीछे धार्मिक कारण को बताने वाले हैं कि सदियों से चला आ रहा ये त्यौहार क्यो मनाया जाता है।

रक्षा बंधन
रक्षा बंधन

प्रचलित कहानियां

रक्षा बंधन मनाने के पीछे कई धार्मिक कहानियां प्रचलित हैं-कहा जाता है कि असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। राजा बलि के आधिपत्‍य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्‍णु के पास मदद मांगने पहुंचे। भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया।

अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया। इस तरह देवताओं की चिंता खत्‍म हो गई। वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्‍न हुए। उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्‍छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा। भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गए।

अपने पति भगवान विष्‍णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी। बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्‍यता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा।

द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण की कथा

महाभारत काल के अनुसार कृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।

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