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भगवान कृष्ण के नवरूप हैं श्री रामकृष्ण: मुक्तिनाथानन्द

WhatsApp Image 2021 08 30 at 8.25.18 PM 1 भगवान कृष्ण के नवरूप हैं श्री रामकृष्ण: मुक्तिनाथानन्द

लखनऊ। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सोमवार के प्रातः कालीन विशेष सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने बताया कि द्वापर युग में भगवान के अष्टम अवतार रूप से जो श्रीकृष्ण अवतीर्ण हुए थे वही कलयुग में रामकृष्ण रूप धारण करके धराधाम में आए थे। श्री कृष्ण के अवतरण के तीन मुख्य कारण दिखाई पड़ते है- प्रथम, कुरुक्षेत्र युद्ध क्षेत्र में जो श्रीमद्भगवद गीता का वाणी उच्चारण किया गया था वह भगवतगीता का सार संदेश भगवान श्री रामकृष्ण ने कहा गीता शब्द को उल्टा कर देने से वही है अर्थात ’तागी’ यानी ’त्याग’।

व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि हे जीव! ईश्वर के लिए सर्वप्रकार की आसक्ति त्याग करो लेकिन वो वाणी जीवन में परिणत करने के लिए श्री कृष्ण रुपी ईश्वर श्री रामकृष्ण अपना जीवन उत्सर्ग किया। जैसे गीता में कहा गया है, जो स्थितिप्रज्ञ है जैसे- कछुआ अपने अंग प्रत्यंग एक बार शरीर के भीतर समेट लेने से उसको काटने पर भी वह नहीं निकलता है। वैसे ही जो त्यागी पुरुष है वह विषय से इंद्रियों को समेट लेते हैं और विषय भोग से दूर रहते हैं। स्वामी जी ने कहा कि  भगवान श्री रामकृष्ण के जीवन में देखा गया है कि वह धातु द्रव्य स्पर्श नहीं कर सकते थे। धातु द्रव्य छूने से उनके हाथ-पैर मे टेढ़ापन हो जाता था। ऐसा त्याग न कभी देखा न कभी सुना अपनी वाणी को चरितार्थ करने के लिए रामकृष्णरूप में दिखाया।

उनके आगमन का द्वितीय कारण है श्री रामकृष्ण एक ही शरीर में कृष्ण एवं राधिका की युगल मूर्ति थे। श्री कृष्ण राधा प्रेम से अपलूत थे लेकिन राधा उनको कैसे प्यार करती थीं, वह जान नहीं पाये। इसकी भरपाई श्री रामकृष्ण शरीर में हुयी। श्री रामकृष्ण ने राधा की आराधना करते हुए राधा दर्शन किया एवं स्वयं राधिका बन गए और दूसरी ओर से श्री कृष्ण की आराधना करते हुए श्री कृष्ण रुप से भी भक्तगण के सामने प्रकट हुए थे। जैसे गोपालेर माँ उनको साक्षात बालगोपाल रूप से देखा था। स्वामी ब्रह्मानंद जी उनको वृंदावन के कृष्ण रुप से पहचान लिया था।

उनके आगमन का तीसरा कारण श्रीमद्भगवद्गीता में योग-समन्वय की वाणी, धर्म-समन्वय की वाणी श्री कृष्ण उच्चारण किए थे वही श्री रामकृष्ण अपने जीवन में सर्वधर्ममत एक-एक करके अनुसरण करके प्रमाणित कर दिया- ’जितने मत उतने पथ’।

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