क्या आप जानते हैं कि एक वक्त ऐसा आया था जब माता पार्वती ने भगवान शिव को निगल लिया था। इसके पीछे की वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे। क्योंकि इसके पीछे भी शिव की एक लीला थी। पुराणों में ऐसा बताया गया है कि अपनी भूख को शांत करने के लिए माता पार्वती भगवान शिव को निगल गईं थी।
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दरअसल एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान मग्न बैठे हुए थे। ध्यान में लीन माता पार्वती भगवान शिव को जगाने की कोशिश करती हैं। क्योंकि वह उनसे पहले आहार ग्रहण नहीं कर सकती थीं। यही वजह है कि माता पार्वती भगवान शिव को जगाने की कोशिश करती हैं।
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लेकिन ध्यान में लीन भोलेनाथ ध्यान में ही रहते हैं। धीरे-धीरे माता पार्वती की भूख बढ़ती जाती है। माता की भूख इतनी तीव्र हो जाती है कि वो भगवान शिव को श्वास खींचकर निगल लेती हैं। लेकिन आप सभी जानते हैं कि भगवान भोलेनाथ के कंठ में विष है।
इसी विष को झेलना किसी के बस की बात नहीं है।
यही वजह है की जैसे ही माता पार्वती भोलेनाथ को निगलती हैं तो उनके शरीर से धुंआ निकलने लगता है। उनका स्वरूप श्रंगार रहित एक विधवा के जैसा हो जाता है।
इसके बाद माया के जरिए भगवान भोलेनाथ मां पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं। भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गईं अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी। शिवजी मां पार्वती के इस रूप को पूजे जाने का भी वरदान देते हैं। यही वजह है कि मां पार्वती के इस रूप को धूमावती के नाम से पूजा जाता है।
धूमावती माता विधवा रूप धारण किए हुए सफेद रंग के कपड़े में हैं। माता के बाल हमेशा खुले रहते हैं। कौआ माता का वाहन है। माता का स्वरूप उग्र है लेकिन अपनी संतान के लिए वह कल्यायणकारी ही हैं। मां धूमावती के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। देवी नक्षत्र ज्येष्ठा नक्षत्र है इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं।