नई दिल्ली। अनेकता में एकता लिए विविध रंग परिभाषाओं की मालाओं में गुथा ये देश भारत यहां के पर्व और त्यौहार हमारी सनातन संस्कृति और सभ्यता के वाहक हैं। इन दिनों प्रकृति और मौसम अपनी रंगत बिखेरे धरती के आंचल को हरियाली से ढक देता है। इसी हरियाली में हमारी समृद्ध की छाप छिपी होती है। इसका हम पर्व और त्यौहार के जरिए स्वागत करते हैं। सदूर दक्षिण भारत में ऐसा की एक प्रकृति से जुड़ा पर्व है ओणम यह पर दक्षिण भारत के स्वर्ग केरल का प्रमुख त्यौहार है। यहां पर ये पर्व बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
मान्यता है कि इस दिन राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने के लिए किसी ना किसी रूप में धरती पर आते हैं। पुराणों में भी राजा बलि को लेकर कथा आती है कि राजा बली ने 3 लोकों में अपना राज्य स्थापित कर लिया था। अब वो एक वृहद अनुष्ठान कर रहे थे। जिसके कारण देवताओं में भय उत्पन्न हो गया उन्होने भगवान विष्णु से राजा बलि के भय से मुक्ति कराने की प्रार्थना की इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि के सामने भिक्षा मानने गए वहां पर उन्होने 3 पग भूमि का दान मांग तो राजा बलि ने कहा कि आप नाप ले जहां पर वो जमीन आपको दे दी। इसके बाद भगवान ने ढाई पग ने 3 लोक नाप लिए तो आधे पग के लिए राजा बलि ने अपना सर सामने कर दिया और कहा हे भगवन आप अपना पैर यहां रखे और मेरे दान को पूर्ण करें।
इसके बाद भगवान ने राजा बलि को पाताल का स्वामी बना दिया इसके बाद से राजा बलि और भगवान वामन की ये कथा हमेशा हमेशा के लिए प्रसिद्ध होगी कि वामन जैसी भिक्षा और बलि जैसा दान आज तक नहीं हुआ ना होगा। इसके बाद बलि ने भगवान से अपनी प्रजा से मिलने की प्रार्थना की तो साल में एक दिन उनको ये छूट प्राप्त हुई उसी को ओणम के तौर पर केरल के वासी मनाते हैं।
इस पर्व को मानने के लिए कई दिनों पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ओणम के लिए कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लोग ओणम को लेकर भोज का आयोजन करते हैं, भोज में रिश्तेदार और नजदीकियों के साथ करीबियों को आमंत्रित किया जाता है। ओणम में कई तरह से घरों को सजाया जाता है। इस दौरान ओणम में कई पकवानों को भी तैयार किया जाता है। इन पकवानों में खासतौर पर खिचड़ी करेला, खिचड़ी बीटरूट,अवियल, पुल्लिस्सेरी, दाल, सांभर, दही, घी, आमदुध और चावल की खीर, केला चिप्स जैसे 27 व्यंजनों को तैयार किया जाता है। इन सभी व्यंजनों को केले के पत्ते पर परोसा जाता है। कहा जाता है कि ये 27 व्यंजन दक्षिण भारत की पहचान है और केले के पत्ते पर खाना शुभ माना जाता है। इस दिन पोक्कलम के तौर पर विशेष तरह की रंगोली मलयाली समुदाय की महिलाओं की ओर से बनाई जाती है। ये फूलों की पंखुड़ियों को सजा कर कई तरह के विशेष फूलों से इसका श्रृंगार किया जाता है। इसको इस पर्व का सबसे आकर्षक अंग माना जाता है। ये कलाकृति इतनी आकर्षक होती है कि आप इसको देखते ही रह जायेंगे।
इस दिन यहां पर कई सारी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। विश्व प्रसिद्ध नौका प्रतियोगिता का भी यहां पर इसी दिन आयोजन होता है। इस दौरान यहां पर स्त्री और पुरूष यहां के परम्परिक नृत्य शैली में लोकनृत्य करते हैं। जिसमें शेरनृत्य, कुचिपुड़ी, ओडीसी, कत्थककली नृत्य विश्व प्रसिद्ध हैं। इस पर्व के पहले यहां पर बड़े पैमाने पर बाहर से पर्यटक भी आते हैं। पर्यटन के लिए केरला हमेशा से ही देश ही नहीं बल्कि विदेशों के आकर्षण का केन्द्र रहा है।
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