अयोध्या। जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं तीरथ सकल तहां चलि आवहिं गोस्वामी तुलसी दास ने राम चरित्रमानस में इस चौपाई को संदर्भित करते हुए कहा है कि जिस दिन को श्रुतियों में वर्णित किया गया है या शास्त्रों में बताया गया है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था उस अयोध्या में उस दिन सभी तीर्थ और देवता चले आते हैं।
रामनगरी में अनादिकाल से त्रेतायुग से ही मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम चन्द्र का जन्मोत्सव मनाए की प्राचीन परम्परा रही है। इस पर्व के ठीक 9 दिन पहले से ही अयोध्या में देश-विदेश और गांवों से बड़ी संख्या में भक्त और श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो जाता है। पूरे 15 दिवसीय इस पर्व और मेले को लेकर जिला-प्रशासन की ओर से बड़ी तैयारियां भी की जाती है।
रामनगरी में बधाई की परम्परा
अयोध्या के लिए रामनवमी से बड़ा पर्व कोई और नहीं होता है। इस पर्व को लेकर बड़े आयोजन किए जाते हैं। चैत शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि से ही मंदिरों की साज-सज्जा का काम शुरू किया जाने लगता है। मंदिरों में रंग-रोगन के काम के साथ ही बदलते वक्त में तेज रोशनी और चमक के लिए झालरों का भी प्रयोग होने लगा है। इसके साथ ही फूलों से रोज मंदिरों का बड़े पैमाने पर श्रृंगार किया जाता है। इसे यहां पर फूल बंगले की झांकी के तौर पर जाना जाता है। प्रतिपदा तिथि से ही मंदिरो में बधाई गायन की परम्परा की भी शुरूआत हो जाती है। बधाई गायन की परम्परा को लेकर कहा जाता है कि भगवान के जन्म से ही इसकी परम्परा पड़ी है। प्राचीन भारतीय परिवेश में बधाई गायन की परम्परा को सोहर के तौर पर भी जाना जाता है।
भोग-प्रसाद के लिए विशेष तैयारी
भगवान के जन्मोत्सव के अवसर पर इस वृहद कार्यक्रम को लेकर बड़े पैमाने पर प्रसाद और भोग के लिए तैयारी की जाती है। मंदिरों में प्रतिपदा की तिथि से लगातार व्रत और साधारण दो तरीके के व्यंजनों को तैयार किया जाता है। जिसे भगवान के भोग के बाद मंदिर में आने वालों को प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है। ठीक दोपहर के बाद संतों के लिए भोजन की व्यापक व्यवस्था होती है। इसमें दी जाने वाली खीर प्रसाद की बड़ी विशेषता होती है। विशेष तौर पर चावल और दूध की ये खीर प्रसाद पाने वालों की पहली पसंद होती है। वैसे हर दिन का एक विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। लेकिन खीर प्रसाद हर दिन भक्तों के लिए विशेष होता है। इसके साथ ही रामनवमी के लिए दो तरह के प्रसादों की व्यवस्था होती है। पहला व्रत रखने वालों के लिए दूसरा जनसाधरण के लिए होता है।
भगवान की पोशाक को लेकर विशेष तैयारी
भगवान के लिए हर दिन की अलग-अलग पोशाक होती है। लेकिन प्रतिपदा से लेकर नवमी और फिर भगवान की छठी तक के लिए हर दिन की अलग पोशाक तैयार की जाती है। इन पोशाकों के लिए कारीगरों को मंदिरों में ही बुलाया जाता है। जहां जरी और गोटे के साथ सोन और चांदी के तारों और रेशमी कपड़ों से इन पोशाकों को अलग-अलग डिजाइनों में तैयार किया जाता है। इन पोशाकों में राजस्थानी, मारवाड़ी और बुंदेलखंडी के साथ मराठवाड़ा लुक का प्रचलन जाता होता है।
मंदिरों में धार्मिक आयोजन
इस विशेष पर्व के पहले से ही मंदिरों में बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजनों को आयोजित किया जाता है। इन आय़ोजनों में धार्मिक कथाओं के साथ रामलीला का भी आयोजन होता है। हर दिन भजन औऱ जागरण के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। जिन में देश विदेश के बड़े कलाकारों को बुलाया जाता है। इस पूरे कार्यक्रम का कई टीबी चैनलों पर सीधा प्रसारण भी किया जाता है।
15 दिनों तक चलने वाले इस पर्व को अयोध्यावासी बड़े ही धूम से मनाते हैं। ये पर्व जहां राम से जुड़ा है वहीं अयोध्या की रगों से इसका बड़ा ही व्यापक जुड़ाव रहा है। इसीलिए तो हर अवधवासी इस दिन यही कहता है कि “करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता। सो मम हित लागी, जन अनुरागी,भयउ प्रगट श्रीकंता॥”
अजस्र पीयूष