- पंचायत चुनावों में मिली सफलता को कायम रखना बड़ी चुनौती
- 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले पंचायत चुनावों को सेमीफाइनल के रूप में देखा गया है
सुशील कुमार, लखनऊ। हाल ही में उत्तर प्रदेश में आए पंचायत चुनावों के नतीजों ने विपक्ष को एक नई उम्मीद की किरण दिखाई है। पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन का दावा किया है। वहीं बसपा और रालोद ने भी कई जगहों पर बेहतर प्रदर्शन किया है। पश्चिम बंगाल में मिली हार के बाद पंचायत चुनावों के नतीजों ने सत्ताधारी भाजपा के लिए चिंता की लकीरें खींच दी हैं। यही कारण है कि भाजपा इन दिनों अपनी रणनीतियों और पंचायत चुनावों की समीक्षा को लेकर लगातार बैठकें कर रही है। सूत्रों का यहां तक कहना है कि पार्टी से लेकर सरकार तक में बड़े फेरबदल किये जा सकते हैं।
पूर्वांचल समेत यूपी में दिखा सपा का दबदबा
पंचायत चुनावों के नतीजों से पूरी तरह साफ है कि समाजवादी पार्टी का दबदबा बढ़ा है। हालांकि सपा का दावा है कि उसने प्रदेश में 800 से ज्यादा जिला पंचायत की सीटों पर विजय पताका फहराई है। वहीं पूर्वांचल में भी सपा ने दावा किया है करीब 200 से ज्यादा सीटों पर उनके प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई है।
जीत के सबके दावे अलग, लेकिन यह है वास्तविक तस्वीर!
हालांकि सभी दल अपने अपने अनुसार सीटों की संख्या का दावा कर रहे हैं। लेकिन दैनिक भाष्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी कुल 3050 जिला पंचायत सीटों पर सबसे ज्यादा निर्दलीय जीते हैं। उसके बाद भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद, आम आदमी पार्टी आदि का नंबर है।
राष्ट्रीय लोकदल ने पश्चिमी यूपी में दिखाई ताकत
साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद रालोद की जमीन खिसकती चली गई। उसका नतीजा यह रहा कि 2014 के लोकसभा, 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में असफलताएं ही हाथ लगीं। आलम यह रहा कि रालोद अपनी पारंपरिक सीटें भी नहीं बचा सकी। हालांकि 2019 के चुनावों में सपा और बसपा के साथ गठबंधन ने वोट प्रतिशत बढ़ाए जरूर लेकिन सफलता फिर भी दूर रही।
ऐसे में एक बार फिर पंचायत चुनावों में रालोद ने सपा के साथ मिलकर लड़ने का निर्णय लिया। पश्चिमी यूपी के आए चुनावी परिणामों से रालोद की एक बार फिर बाछें खिल गईं हैं। रालोद को पश्चिमी यूपी में मेगा सफलता हाथ लगी है। यहां पर रालोद ने 65 से ज्यादा जिला पंचायत की सीटों को अपने नाम किया है। रालोद के जाट-मुस्लिम गठजोड़ का फार्मूला एक बार फिर रंग लाता दिख रहा है जो साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बिखर गया था।
किसान आंदोलन का दिखा असर
पश्चिमी यूपी के चुनावी नतीजों को देखें तो यहां पर किसान आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभाई है। इस आंदोलन के कारण सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ एक माहौल जरूर तैयार हुआ है। इसके अलावा किसानों की अन्य समस्याएं, बेरोजगारी, महंगाई आदि के मुद्दे भी भाजपा के लिए चुनौती बने हैं।
भाजपा की उड़ी नींद
पंचायत चुनावों ने सत्ताधारी बीजेपी की नींदें उड़ा दी हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है भाजपा को उसके गढ़ माने जाने वाले वाराणसी, मथुरा, लखनऊ, अयोध्या समेत कई जगहों पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। खासकर वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते बीजेपी की यह हार उसके लिए चिंता का विषय बन गईं हैं।
अगर इन जिलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अयोध्या में जिला पंचायत की करीब 40 सीटें हैं, वहां पर सपा ने 24 सीटें अपने नाम की हैं। वाराणसी में 40 में से मात्र सात सीटें बीजेपी को मिला पाईं, जबकि सपा ने 15 सीटें अपने नाम कीं।
सीटों का खेल समझिए
अगर हम आंकड़ों पर बात करें तो पूर्वांचल में करीब 28 जिले आते हैं जहां पर विधानसभा की कुल 164 सीटें हैं और पश्विमी यूपी के 15 जिलों में करीब 73 सीटें हैं। पूर्वांचल में भाजपा को साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 115 सीटें मिलीं। जबकि सपा को मात्र 17 और बसपा को 14 सीटें हासिल हुईं।
लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन यानी सपा-बसपा-रालोद के गठजोड़ को यहां अच्छी सफलता मिली। बसपा ने सबसे ज्यादा छह सीटें यहां जीतीं। वहीं सपा को भी आजमगढ़ में सफलता हाथ लगी। पश्चिमी यूपी की बात करें तो यहां पर भी बीजेपी सबसे आगे थी। 2014 से ही यहां पर रालोद, सपा, बसपा पतन की ओर हैं। लेकिन पंचायत चुनावों ने अलग तस्वीर पैदा कर दी है।
सपा-रालोद कैसे बिगाड़ेंगे खेल
पूर्वांचल की 164 और पश्विमी यूपी की 73 सीटें मिलाकर कुल 237 हो गईं। इन सीटों पर पंचायत चुनावों के नतीजों के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा सपा-रालोद का दबदबा है। बहुजन समाज पार्टी भी यहां पर तगड़ी टक्कर में है। पूर्वांचल में करीब 90 और पश्चिमी यूपी में करीब 60 से सीटें जिला पंचायत की उसके ही खाते में हैं।
इसके अलावा अवध क्षेत्र और बुंदेलखंड में भी सपा का दबदबा है। ऐसे में विधानसभा चुनावों के नतीजे अगर भाजपा के खिलाफ जाएं तो इसमें अचरज भरा कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि यूपी में बहुमत के लिए 203 सीटें चाहिए। जिनमें से 237 सीटों पर सपा-रालोद की पकड़ अब काफी मजबूत हो चुकी है। अवध और बुंदेलखंड भी सपा के लिए सकारात्मक साबित हो सकते हैं।
सत्ता विरोधी लहर का भी मिल सकता है फायदा
कोई भी चुनाव सत्ताधारी दल के लिए चुनौतियों से भरा होता है। एक वर्ग में सत्ता विरोधी लहर बड़े पैमाने पर काम करती है। अगर यूपी में भी ऐसा होता है तो योगी सरकार के सामने चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। इसके अलावा आवारा पशुओं के कारण किसान बेहद परेशान हैं, लगातार महंगा हो रहे डीजल-पेट्रोल के दाम, महंगाई, बेरोजगारी, नौकरशाही का हावी होना, कोरोना नियंत्रण में फेल होना, तमाम प्रयासों के बाद भी अपराधों पर नियंत्रण नहीं, विकास कार्यों का कई हिस्सों तक ना पहुंच पाना समेत कई मुद्दे हैं जो विपक्ष के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। खासकर सपा के लिए।