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सपा, बसपा, कांग्रेस गठबंधन 11 राज्यों की 338 लोकसभा सीट बीजेपी पर पड़ सकती है भारी

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव एक साल बाद 2019 में होने वाला है। चुनावी जंग के लिए सत्ता व विपक्षी सेनाएं तैयारी करने लगी हैं। दोनों तरफ से साम-दाम और दंड-भेद वाली शातिर चाल चलनी शुरू कर दी गई हैं। ऐसे में संभावना जताई जाने लगी है कि देश के हिन्दी हृदय क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा,पंजाब आैर हिमाचल के 238 लोकसभा क्षेत्र में भाजपा अपना वोट कटने-छिटकने नहीं देने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यदि इसमें चंडीगढ़ संसदीय क्षेत्र को भी जोड़ लें तो ये कुल 239 लोकसभा सीट हो जाती हैं, जो लोकसभा की कुल चुनाव वाली सीट 543 से 304 ही कम (543-239=304) हैं। आशंका यह है कि लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में यदि सपा-बसपा-कांग्रेस तथा राज्य के हिसाब से कुछ-कुछ सीटों पर प्रभावी छोटे दलों के साथ मोर्चा बन गया, तो यह हर राज्य में भाजपा से अधिक सीटें जीत ले जायेगा।

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यदि अयोध्या में राममंदिर बनाने का अक्टूबर, 2018 तक न्यायालय का फैसला भी आ गया, उसे लेकर गांव-गांव शिला संग्रह अभियान भी शुरू कर दिया जायेगा, तब भी यह गठबंधन अधिक सीटें झटक ले जायेगा। सो यह गठबंधन हो ही नहीं, इसका उपक्रम हो सकता है। इस मामले के जानकार सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील का कहना है कि इसका सबसे कारगर हथियार है सीबीआई। सपा और बसपा के मालिकानों के आय से अधिक मामले तो जांच के लिए लंबित पड़े ही हैं, इनकी सरकारों के समय के कई घोटालों के मामले भी चल रहे हैं। संकेत मिलते ही सीबीआई, ईडी शुरू हो जायेंगी। यह होते ही रोज-रोज पूछताछ, जांच, छापे के चलते न तो अखिलेश यादव या मुलायम सिंह चुनाव प्रबंधन और प्रचार कर पायेंगे न ही मायावती और उनके भाई आनंद।

इस बारे में सपा और बसपा के कुछ सांसदों का कहना है कि यदि अखिलेश यादव, उनके पिता मुलायम सिंह यादव और मायावती व उनके भाई आनंद को जेल में डाल दिया गया, तब तो भाजपा सरकार के लिए यह दाव और उल्टा पड़ सकता है। क्योंकि यह करने का समय बीत चुका है। यह 2015 और 2016 में हो सकता था। अब तो लोकसभा चुनाव सिर पर है। और यादव मतदाता अपनी जाति के सबसे मजबूत, लड़ाकू नेता को मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहता है। यही रुख दलित मतदाता का है। वह मायावती को मुख्यमंत्री पद पर या पावर में देखना चाहता है। ऐसे में यदि अखिलेश और मायावती पर सीबीआई, आयकर, प्रवर्तन का छापा लगातार मरवाकर, उन्हें जेल में डाला गया तो यादव व दलित मतदाता उद्धेलित हो जायेंगे। जैसे लालू के जेल जाने के बाद भी राजद का वोट नहीं घटा, उसी तरह सपा और बसपा के भी नहीं घटेंगे, बल्कि और एकजुट होकर बढ़ेंगे।

आन्ध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के जगन रेड्डी भी भ्रष्टाचार, आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जेल में थे। फिर भी खत्म नहीं हुए, तेदेपा से कुछ ही कम सीटें लाये और अब भाजपा उनके साथ चुनाव के पहले अघोषित रूप से तालमेल कर चुनाव लड़ने, चुनाव के बाद मिलकर सरकार बनाने की योजना बना रही है। इसीलिए कहा जाने लगा है कि अखिलेश-माया को जेल भेजा गया तो उल्टा उन दोनों को ही और फायदा होगा। राज्य के कुछ बुजुर्ग नेताओं का कहना है कि अखिलेश का यादव मतदाता, अखिलेश को पावरफुल देखना चाहता है।

उसी तरह दलित मतदाता कहता है कि कोई भी मुख्यमंत्री हो, उसे रोज दिहाड़ी करना है, खाना है, लेकिन मायावती के मुख्यमंत्री होने या पावर में होने से कोई आंख तो नहीं दिखाता है। इसलिए वह मायावती के नाम पर वोट देता है। इसी दलित एकजुटता को तोड़ने के लिए अति दलित और इसी तरह ओबीसी में अति पिछड़ा को अलग से आरक्षण देने, इनमें दो फाड़ करने की कोशिश हो रही है, लेकिन सपा और बसपा के एकजुट होकर लड़ने पर यह भी प्रभावहीन हो सकता है। यह और बड़ा खतरा है। अगड़ों को भी नाराज किये, पिछड़ा व दलित वोट भी गंवाये वाली हालत हो जायेगी।

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