नई दिल्ली। गूगल ने सबसे पहले खुद से चल सकने वाली कारों का विकास शुरू किया। लेकिन अब टेस्ला मोटर्स, जीएम और फोर्ड भी जोर-शोर से इसे विकसित करने में जुटी है और हाल में ही इस दौड़ में ऑन डिमांड कार सेवा मुहैया करानेवाली कंपनी जुट गई है। उबेर ने 18 अगस्त को स्वीडन के कार निर्माता कंपनी वोल्वो के साथ 30 करोड़ डॉलर का सौदा किया, जिसे तहत साल 2021 तक पूर्ण ड्राइवर रहित कार को विकसित किया जाएगा। इसके अलावा उबेर ने सैन फ्रांसिस्को की स्टार्टअप ओट्टो का भी अधिग्रहण किया जो ड्राइवररहित ट्रक को विकसित कर रही है।
इस बारे में उबेर के प्रवक्ता ने सैन फ्रांसिसको से भेजे ईमेल में बताया, हमने एक पॉयलट कार्यक्रम शुरू किया है जिसके तहत हमारी एडवांस टेक्नॉलजी सेंटर के दल के मित्र और परिजन उबर एप के माध्यम से खुद से चलने वाली कारें (सेल्फ ड्राइविंग कार) को बुक कर सकते हैं। यह अभी शुरुआती अवस्था में ही है, लेकिन हम इस कार्यक्रम का विस्तार समूचे पिट्सबर्ग में करने की योजना बना रहे हैं।
उबेर पिट्सबर्ग के लोगों को वोल्वो के मोडिफाइड स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेहिकल (एसयूवी) में सफर करने का मौका देगी, जो बिना ड्राइवर के खुद व खुद चलेगी।
हालांकि मई में खुद से चलने वाली कारों के प्रयास के एक बड़ा झटका लगा था, जब ओहियो के जोशुआ ब्राउन टेस्ला की मॉडल एस इलेक्ट्रिक सेडान को ऑटो पायलट मोड में चलाने के दौरान मारे गए, जब वह कार सामने से आ रही ट्रैक्टर से टकरा गई। किसी सेल्फ ड्राइविंग गाड़ी के द्वारा हुई यह पहली घातक दुर्घटना है। शुरुआती जांच से पता चला कि ट्रैक्टर-ट्रेलर टेस्ला के रास्ते में आ गई थी, लेकिन इस स्वचालित कार का ऑटोपायलट समय पर ब्रेक लगाने में नाकाम साबित हुआ।
इस त्रासदी के बावजूद सेल्फ ड्राइविंग कार की योजना को बढ़ावा देनेवाले समय के साथ इसमें व्यापक अवसर देख रहे हैं। क्योंकि अब वक्त सबसे महंगी चीज बन गई है और लोग बहुत सारा वक्त गाड़ी चलाने और पार्किंग ढूंढने में बरबाद करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, यात्री कारें सालाना कुल 10 लाख करोड़ मील का सफर तय करती हैं और उनकी औसत रफ्तार 40 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। उन्होंने यह भी अनुमान लगाया है कि लोग 600 अरब घंटा का वक्त सालाना कार में ही बिता रहे हैं।
गुड़गांव की रिसर्च कंपनी साइबर मीडिया रिसर्च के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और प्रमुख थॉमस जार्ज ने बताया, ड्राइवररहित कारों को विकसित होने में समय लगेगा। इसके बाद भी भारत जैसे स्वचालित तकनीक का कम प्रयोग करने वाले भौगोलिक क्षेत्र में इसे आने में लंबा समय लगेगा। हालांकि अमेरिका और चीन में अगले 15-20 सालों में यह बेहद आम होगा।