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वृंदावन कुंभ के आयोजन से जुड़ी कुछ रोचक बातें, जानिए क्यों कहते हैं इसे वैष्णव कुंभ

वृंदावन कुंभ के आयोजन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें, जानिए क्यों कहते हैं इसे वैष्णव कुंभ

मथुरा: वृंदावन कुंभ में इन दिनों मेले का आयोजन हो रहा है, जहां लाखों की संख्या में लोग इसका हिस्सा बन रहे हैं। वसंत पंचमी से शुरु हुए इस आयोजन का समापन 28 मार्च को होगा।

क्यों कहते हैं इसे वैष्णव कुंभ

वृंदावन कुंभ को वैष्णव कुंभ के नाम से जाना जाता है, इसके पीछे एक पुरातन मान्यता है। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला था, तब इसे लेकर भगवान गरुड़ चले थे। रास्ते में वह वृंदावन भी रुके थे। यहाँ उन्होंने थोड़ी देर विश्राम किया।

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इसके बाद अमृत कलश को लेकर नासिक, उज्जैन, प्रयागराज और हरिद्वार की तरफ गये। इन्हीं चार जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है। जिसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।

भगवान गरुड़ के वृंदावन में अमृत कलश के साथ विश्राम करने के कारण इसकी महत्ता भी बढ़ गई। इसीलिए यहां वैष्णव कुंभ की शुरुआत हुई।

वसंत पंचमी से हुई वृंदावन कुंभ की शुरुआत

वैष्णव कुंभ 12 वर्ष में एक बार मनाया जाता है। यहां यमुना तट के किनारे वसंत पंचमी के दिन से वृंदावन कुंभ आयोजन की शुरुआत होती है। सबसे पहले तीन प्रमुख अखाड़ों के द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है। यह तीन अखाड़े निर्वाणी, दिगंबर और निर्मोही अखाड़े हैं।

ध्वजारोहण वृंदावन कुंभ की औपचारिक शुरुआत का ऐलान होता है। इस विशाल आयोजन में शैव सन्यासी और साधु शामिल नहीं होते, इनमें नागा साधु भी शामिल हैं। वैष्णव कुंभ में सिर्फ वैष्णव संत ही हिस्सा लेते हैं।

संस्कृति ग्राम से काफी प्रभावित हो रहे लोग

संस्कृति ग्राम में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को दिखाया गया है। यह ग्राम वृंदावन की संस्कृति और ब्रज सभ्यता को समेटे हुए हैं। भगवान के बाल रूप में की गई लीलाओं को श्रद्धालु यहां देख सकते हैं। भगवान के दर्शन के साथ-साथ जानकारी का भी भंडार संस्कृति ग्राम है।

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मथुरा संग्रहालय के द्वारा संस्कृति ग्राम में प्रदर्शनी लगाई गई है। यहां की पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहर के प्रति प्रदर्शनी के माध्यम से जनता को आकर्षित किया जा रहा है।

दूर-दराज से वृंदावन कुंभ में आए हुए लोग भगवान की धरती पर खुद को पाकर खुश हो जाते हैं। इसके साथ ही संस्कृति ग्राम में उनको श्री कृष्ण की बाल लीलाएं और पौराणिक कथाओं का चित्रण भी रोमांचित करता है।

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धूनी साधना का है विशेष महत्व

वैष्णव कुंभ में साधु धूनी साधना भी लगाते हैं। इस दौरान सभी साधु संत चारों तरफ अग्नि जलाकर ईश्वर की आराधना में लीन हो जाते हैं। इसे ही धूनी साधना कहते हैं।

इस साधना के दौरान किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप उनको प्रभावित नहीं करता। वह अपने और ईश्वर के बीच किसी भी चीज को आने नहीं देते। इसीलिए पूरे शांत चित्त के साथ इस साधना को किया जाता है।

धूनी साधना कई प्रकार की होती है, जिनमें पंच धूनी, 8 धूनी और 84 धूनी प्रमुख हैं। 84 धूनी साधना में आसपास 84 जगहों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इसके बाद बीच में बैठकर सभी साधना में लीन हो जाते हैं।

इस प्रक्रिया का सबसे कठिन प्रकार  वह होता है, जिसमें मटके में आग रखकर सिर पर रख लिया जाता है। इसके बाद चारों तरफ आग जलाकर आसन जमाया जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि धूनी साधना दोपहर में होती है। ऐसे में गर्मी और धूप दोनों के बीच यह करना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

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किन्नर अखाड़े की हुई इंट्री

इस बार वृंदावन कुंभ में किन्नर अखाड़े को भी प्रवेश मिल गया, इसे खालसा किन्नर अखआड़े के रूप में प्रवेश मिला है। महामंडलेश्वर हेमांगी सखी ने इस पर काफी खुशी जताई। उन्होंने कहा कि समाज में एकजुटता और सौहार्द को कायम करने के लिए यह निर्णय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। समाज अब धीरे-धीरे किन्नरों को भी अपना हिस्सा मानने लगा है।

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