- भारत खबर
महाभारत के समय ऐसी बहुत की अनेकों घटनाएं हुई जिनके बारे में अंदाजा लगाना भी मुश्किल है जैसे द्रोपदी का चीर हरण महाभारत के युद्ध का होना पांडवों की विजय और भी अनेक ऐसे विषय हैं जिन्हें आप जानने की जिज्ञासा भी रखते हैं हम आज आपको इन्हीं से मिलती-जुलती कुछ ऐसी घटनाओं से रूबरू कराएंगे जो आपके लिए जानना बेहद जरूरी है।
द्रोपदी का चीर हरण
महाभारत काल में क्रीड़ा के समय युधिष्ठिर इतना मदान हो गया था कि उसने अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया था। और उस समय द्रौपदी को दांव पर लगाने के बाद वह उस क्रीडा में विजय प्राप्त ना कर सका। उसके मामा शकुनि ने उस कीड़ा में विजय प्राप्त कर द्रोपदी को जीत लिया था। द्रोपति को जीतने के बाद उसके मामा शकुनि ने द्रोपति पर बहुत दुराचार किए। द्रोपति के बालों को पकड़कर घसीटते हुए सभा में लाया गया और उसके साथ चीरहरण की घटना को भी अंजाम दिया गया।
जबकि उस सभा में उनके गुरु विष्णु पिता द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्याय करता एवं महान लोग भी उपस्थित थे। लेकिन उन्होंने अपना तनिक भी मूँह ना खोला और उन्हें अपने इस कार्य का दंड बाद में भुगतना पड़ा। बताते हैं कि दुर्योधन के आदेश पर ही उस समय पूरी सभा के सामने द्रोपदी का चीर हरण किया गया। इसमें द्रोपदी की साड़ी को पूरी भरी सभा में खींचा गया। उस समय इस घटना को देखकर सभी पांडव आग बबूला हो गए। लेकिन वह द्रोपदी की रक्षा करने में असमर्थ थे। तब द्रोपती ने अपनी आंखें बंद कर भगवान श्री का आह्वान किया।
बताते हैं कि भगवान श्री कृष्ण उस समय इस क्रीडा के खेल में मौजूद नहीं थे। द्रोपती ने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान कर अपनी लाज की रक्षा करने को कहा और जब भरी सभा में द्रोपदी की साड़ी खींची जा रही थी तब भगवान श्री कृष्ण ने आकर अपना चमत्कार दिखाया। जिसे देखकर वहां सभी स्तब्ध रह गए। उस समय दुराचारियों के द्वारा द्रोपती की साड़ी खींची जा रही थी। लेकिन द्रोपती के बदन से साड़ी ना हट सकी। द्रोपती की साड़ी लंबी होती चली जा रही थी। बताते हैं कि इसका यह कारण है द्रोपती ने एक समय महर्षि दुर्वासा सहायता की थी। उसी में महर्षि दुर्वासा ने उन्हें यह वरदान दिया था कि एक समय मैं एक समय तुम्हें ऐसा वस्त्र प्रदान करूंगा जो तुम्हारे मान सम्मान की रक्षा करेगा।
बर्बरीक का शीश
महाभारत में बर्बरीक का विशेष रूप से वर्णन आता है। युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दुए एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए। युद्ध से पहले बर्बरीक ने अपनी यह घोषणा की थी मैं युद्ध में उस पक्ष की ओर से लड़ूंगा जो मुझे युद्ध में हारता हुआ दिखाई देगा। बर्बरीक बहुत बलवान व अन्य कलाओं में निपुण था। बर्बरीक का 1 तीर ही पूरे युद्ध के लिए काफी था। बर्बरीक की घोषणा को सुनकर भगवान कृष्ण ने सोचा कि यदि बर्बरीक को कौरव हारते हुए नजर आए तो बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेगा और पांडवों को खत्म कर देगा।
लेकिन यह होना युद्ध के लिए उचित नहीं था। इस बात को सोचकर श्री कृष्ण ने एक लीला रची। श्री कृष्ण ब्राह्मण का वेश बनाकर सुबह सवेरे बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंचे। और दान मांगने लगे। बर्बरीक कर्ण की तरह बेहद दानवीर था। बर्बरीक ने अपने शिविर से निकलकर कहा कहो ब्राह्मण क्या चाहते हो। लेकिन ब्राह्मण के रूप में भगवान श्रीकृष्ण वहां मौजूद थे। उन्होंने बर्बरीक से कहा कि जो मैं मांगूंगा वह तुम मुझे ना दे सकोगे। ब्राह्मण की है बात को सुनकर बर्बरीक बोला नहीं-नहीं आप मांग कर देखिए।
फिर ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने अपने वचन का पालन करते हुए ब्राह्मण रूपी श्रीकृष्ण को अपना शीश दान कर दिया। और बर्बरीक की इस दानवीरता पर भगवान श्री कृष्ण बेहद प्रसन्न हुए। फिर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को यह वरदान दिया कितुम कलयुग में मेरे नाम से ही जाने जाओगे। जो आज खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्ध हैं। युद्ध के दौरान जहां भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को रखा था, उस जगह को खाटू बोला जाता है। और आज संपूर्ण भारत देश में बर्बरीक को भगवान खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है।