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सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग को भेजे निष्पक्ष चुनाव कराने के सुझाव

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  • भारत खबर संवाददाता

देहरादून। आगामी चुनावों के मद्देनजर उत्तराखंड के सिविल सोसाइटी, जन संगठनों एवं राजनैतिक दलों ने निष्पक्ष चुनाव हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव चुनाव आयोग को भेजा है। इसमें कई विन्दुओं को प्रमुखता से उठाया गया है और मुख्य निर्वाचन अधिकारी से अनुरोध किया गया है कि यदि इन नियमों को लागू कर दिया गया तो जरूर चुनाव आयोग को निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने में मदद मिलेगी।

सुझाव नम्बर 1

उत्तराखंड में मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में अंकित नहीं हैं, या तो उनके नाम काटे गए हैं या उनके यहाँ सूची में नाम दर्ज कराने हेतु चुनाव अधिकारी द्वारा अधिकृत कर्मचारी नहीं गया है। मतदान करना सबका बुनियादी हक़ है। जब 298 मतदाताओं का सर्वेक्षण किया गया था, तब उनमें से 12.5% लोगों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं मिले (जिन में से 90% से ज्यादा अनुसूचित जाति या अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे)। अतः आपसे अनुरोध है कि 18 वर्ष से ऊपर आयु के सभी नागरिकों के नाम मतदाता सूचि में अंकित करवाने की कृपा करे।

सुझाव नम्बर 2

यह देखा गया है कि चुनाव प्रचार के दौरान तथा मतदान के दिन एवं उसके एक दिन पूर्व प्रत्याशियों और राजनैतिक दलों के लोग शराब मतदाताओं तक पहुँचाना प्रारम्भ कर देते हैं। इससे निष्पक्ष चुनाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। अतः आप से विनम्र निवेदन है कि जिस दिन से चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करता है, उसी दिन से लेकर मतदान के दिन तक प्रदेश में पूर्ण रूप से शराबबंदी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।

सुझाव नम्बर 3

चुनाव में पहले यह देखा गया है कि सत्ताधारी दल अपने कार्यकर्ताओं तक पैसे और शराब पहुंचवाने के लिए सरकारी वाहनों तथा सुरक्षा बलों के वाहनों का दुरूपयोग करते हैं। यद्यपि निर्वाचन आयोग द्वारा पर्वेक्षक नियुक्त किये जाते हैं, परन्तु सरकारी वाहनों एवं अन्य उच्च अधिकारीयों के वाहनों की जांच पड़ताल नहीं की जाती। इस कारण सत्ताधारी दल बड़ी आसानी से पैसा अपने बूथ एजेंट तक पहुंचवाने में सफल हो जाते हैं। निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी सरकारी गाड़ियों, एयरपोर्ट, हेलिपैड आदि स्थानों पर भी चैकिंग की पारदर्शी व्यवस्था का सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।

सुझाव नम्बर 4

चुनाव आयोग द्वारा प्रत्याशियों के लिए अधिकतम खर्च की सीमा निर्धारित की गयी है। परन्तु राजनैतिक दलों द्वारा खर्च की सीमा निर्धारित नहीं है। फलस्वरूप जिन दलों के पास पैसे बहुलता होती है, वह दल पैसे के बल से चुनाव को प्रभावित करते हैं। अतः हमारा अनुरोध है कि राजनैतिक दलों के भी चुनाव में अधिकतम खर्च की सीमा तय होनी चाहिए। हमारा यह भी सुझाव है कि इस मुद्दे की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा एक सर्वदलीय बैठक बुला कर खर्च की सीमा निर्धारित किया जाना निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक है।

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