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तो कुछ यूं रहे मिल्खा सिंह की जिंदगी में उतार- चढ़ाव, लेकिन नहीं मानी हार

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जब-जब भारतीय खेल का जिक्र होगा मिल्खा सिंह का नाम सबसे ऊपर की लिस्ट में लिखा जाएगा। ध्यानचंद के बाद वह देश के दूसरे सबसे बड़े सुपरस्टार थे ।

बात अगर ट्रैक एंड फील्ड की करें तो वह इसके पहले सुपर स्टार थे। वे जब ट्रैक ऐंड फील्ड पर दौड़ते थे तो ऐसा लगता था कि वे दौड़ नहीं रहे हैं उड़ रहे हैं । ऐसा लगता था कि रेस शुरू हुआ नहीं और पलक झपकते मिल्खा सिंह फिनिशिंग लाइन के पार खड़े हैं । देश ने उन जैसा एथलीट आज तक नहीं देखा और शायद देख भी नहीं पाएगा । ऐसे महान उड़न सिख मिल्खा सिंह का शुक्रवार रात 91 साल की उम्र में निधन हो गया।

200 मीटर और 400 मीटर के नेशनल रिकॉर्ड

मिल्खा सिंह ने 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में बिलकुल रॉ टैलेंट के रूप में पहुंचे। उस साल उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। लेकिन आने वाले वर्षों में मिल्खा ने न सिर्फ खुद को निखारा और तराशा बल्कि कई रिकॉर्ड भी अपने नाम किए। 200 मीटर और 400 मीटर के नैशनल रेकॉर्ड मिल्खा के नाम थे। हालांकि मिल्खा सिर्फ रोम ओलिंपिक के कारण ही महान नहीं थे। भारतीय ट्रैक ऐंड फील्ड में मिल्खा की उपलब्धियां काफी अधिक हैं।

एशिया में चलता था मिल्खा का सिक्का

मिल्खा सिंह की पहचान एक ऐसे ऐथलीट के रूप में थी जो बेहद जुनूनी और समर्पित थे। 1958 के टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर में गोल्ड मेडल हासिल किया। मेलबर्न ओलिंपिक में मिल्खा फाइनल इवेंट के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए थे। लेकिन उनमें आगे बढ़ने की तलब थी।

एशियन गेम्स में बनाया था नैशनल रिकॉर्ड

मिल्खा की उम्र तब 27 साल थी। अगले दो साल वह बड़ी शिद्दत के साथ जेनकिंस के रूटीन पर चले। इसका फायदा भी हुआ। मिल्खा ने 1958 के एशियन गेम्स में नैशनल रेकॉर्ड बनाया। मिल्खा सिंह को 400 मीटर की दौड़ बहुत भाती थी। यहां उन्होंने 47 सेकंड में गोल्ड मेडल हासिल किया। सिल्वर मेडल जीतने वाले पाब्लो सोमब्लिंगो से करीब दो सेकंड कम वक्त लिया था मिल्खा सिंह ने।

 पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को हराया

दूसरा गोल्ड मेडल और खास था। 200 मीटर की दौड़ में मिल्खा ने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को हराया था। खालिद ने गेम्स के नए रेकॉर्ड के साथ 100 मीटर में गोल्ड मेडल जीता था। खालिद को एशिया का सर्वश्रेष्ठ फर्राटा धावक कहा जाता था। मिल्खा, लेकिन शानदा फॉर्म में थे। उन्होंने महज 21.6 सेकंड में गोल्ड मेडल जीतकर एशियन गेम्स का नया रेकॉर्ड बना दिया। फिनिशिंग लाइन पर टांग की मांसपेशियों में खिंचाव आने की वजह से गिर गए थे। वह 0.1 सेकंड के अंतर से जीते और लोगों ने मान लिया कि इस ऐथलीट ने काफी मुकाम हासिल करने हैं।

कॉमनवेल्थ गेम्स में रचा था इतिहास

एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतने के बाद मिल्खा के हौसले बुलंद थे। अब बारी थी कॉमनवेल्थ गेम्स की। यहां मिल्खा ने वह मुकाम हासिल किया जो आज तक भारतीय ऐथलेटिक्स की दुनिया के सबसे यादगार लम्हों में दर्ज है। एशियन गेम्स में उनकी उपलब्धि कमाल थी। लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स, जिन्हें उस समय ‘एम्पायर गेम्स’ कहा जाता था, में मिल्खा के पास दुनिया के कुछ बेहतरीन ऐथलीट्स के सामने खुद को साबित करने का मौका था।

गोल्ड मेडल जीतने का नहीं था यकीन

मिल्खा सिंह ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें यकीन नहीं था कि वे कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत पाएंगे । उन्हें यकीन इसलिए भी नहीं था क्योंकि वे वर्ल्ड रेकॉर्डधारी मेलकम स्पेंस के साथ दौड़ रहे थे। बकौल मिल्खा सिंह मेलकम 400 मीटर के बेस्ट धावक थे। मिल्खा के अमेरिकी कोच डॉक्टर आर्थर हावर्ड ने स्पेन्स की रणनीति पहचान ली थी। उन्होंने देखा था कि वह आखिर में तेज दौड़ता है और ऐसे में उन्होंने मिल्खा से पूरी रेस में दम लगाकर दौड़ने को कहा। मिल्खा की यह चाल कामयाब रही। और 440 गज की दौड़ में मिल्खा शुरू से अंत तक आगे रहे। इस दौरान उन्होंने 46.6 सेकंड का समय लेकर नया नैशनल रिकॉर्ड भी बनाया।

52 साल तक कायम रहा मिल्खा का रिकॉर्ड

मिल्खा कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक ऐंड फील्ड में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनका यह रिकॉर्ड 52 साल तक कायम रहा। उनके इस रिकॉर्ड की बराबरी डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने 2010 के गेम्स में गोल्ड मेडल जीत कर की थी। इसके बाद विकास गौड़ा ने 2014 में सोने का तमगा हासिल किया था। मिल्खा सिंह के सोने के तमगे का खूब जश्न मनाया गया था । उनके अनुरोध पर तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया था।

एक बार फिर एशियन गेम्स में दिखाया जलवा

1958 मिल्खा के करियर का सर्वश्रेष्ठ साल रहा। इसके बाद 1959 में उन्होंने कई यूरोपियन इवेंट्स में जीत हासिल की। वह 1960 के रोम ओलिंपिक के लिए तैयार हो रहे थे। यहां वह जीत तो नहीं सके लेकिन 45.73 सेकंड का समय निकालकर उन्होंने 400 मीटर का नया राष्ट्रीय रेकॉर्ड बनाया। यह इवेंट मिल्खा की पहचान के साथ जुड़ गया।

मिल्खा के नाम 10 एशियन गोल्ड

हालांकि एशियन गेम्स के 400 मीटर के फाइनल के दिन मिल्खा ने फिर सोने का तमगा जीता और युवा साथी को आधे सेकंड के अंतर से मात दी। यह जोड़ी 4×400 मीटर की टीम में साथ आई। इनके साथ दलजीत सिंह और जगदीश सिंह बी थे। इन्होंने एशियन गेम्स का रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने 3:10.2 सेकंड का समय लिया। इस तरह मिल्खा के नाम कुल 10 एशियन गोल्ड मेडल हो गए।

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