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चुनावी दंगल विशेष- बुंदेलखंड को साधने के लिए बड़ी महाभारत

up 3 चुनावी दंगल विशेष- बुंदेलखंड को साधने के लिए बड़ी महाभारत

नई दिल्ली। सूबे में विधान सभा का रण अपने सज चुका है। सभी महारथी अपने तरकश में तीर सजा रहे हैं। चुनावों की तारीखों की घोषणा के बाद से सूबे में राजनीतिक माहौल खासा ही गरम हो गया है। हर इलाके में नेता जनता को अपने पाले में लाने की जुगत में जुटे हैं। सूबे में आने वाले दिनों में होने वाले इस महा जनादेश के यज्ञ में राजनीतिक दल अपने अपने तरीकों से अपने समीकरणों को साध साध रहे हैं। हर राजनीतिक पार्टिंयां अपनी पिछले समीकरणों से वर्तमान की तुलना कर, चुनावी समर की तैयारी कर रही हैं।

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बुंदेल खण्ड को लेकर सियासी पारा चढ़ा
सूबे में 403 विधान सभा सीटों पर होने वाला ये महा जनादेश का रण सूबे के साथ केन्द्र की राजनीति के लिए आने वाले समय के रास्ते खोलने वाला है। क्योंकि इस रण का फर्क केन्द्र की सत्ता पर भी खासा पड़ेगा। सूबे की 19 विधान सभा सीटों को लेकर मध्यांचल और पश्चिमांचल से छूता हुआ इलाका है बुंदेलखंड का जिस जिक्र आते ही, सूखे से बेहाल जनता और बहाल कृषि और विकास की शून्यता ही जहन में आती है। बुंदेलखंड में 19 विधान सभा सीटें आती हैं। लेकिन सूबे के इस इलाके का असर मध्यांचल पर खासा रहता है।

क्या है सत्ता का समीकरण
सूबे सत्ता के लिए अगर बुंदेलखंड को साधने में कोई राजनीतिक दल सफल हो जाता है तो मध्यांचल पर भी उसी दल का डंका बजना तय माना जाता है। 2007 के विधान सभा चुनाव की माने तो बसपा ने बुंदेलखंड की सत्ता पर अपना डंका बजाया था। इसी डंके के जोर ने उसे मध्यांचल में भी अपने विरोधियों को पछाड़ने में खासा मदद की थी। जातिगत समीकरणों की माने तो बसपा के लिए बुंदेलखंड बहुत ही मुफीद है। वहीं दूसरे नम्बर पर सपा के लिए पिछड़े वर्ग के अधिकता उसका जातिगत समीकरण मजबूत करती है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस सर्वण वोटों के सहारे है। मुस्लिम वोटों को सपा के अलावा कांग्रेस और बसपा अपने पाले में लाने के लिए सबसे आतुर है। सत्ता कांग्रेस के लिए भी बुंदेलखंड में सीटों का सूखा बना हुआ है तो भाजपा के लिए भी लम्बे समय से कोई खासा उपलब्धि नहीं हुई है। सपा और बसपा इस इलाके में बेहतर परिणाम देते रहे हैं।

कैसी है यहां की राजनीतिक जंग
विधान सभा के चुनावी समीकरणों और परिणामों का अध्ययन किया जाये तो साफ दिखता है कि यहां पर लडाई में दो दल हमेशा से एक दूसरे पर हावी होने के प्रयास करते रहे हैं। दस्यु सरगनाओं का भी इस इलाके के चुनावी समीकरणों पर खासा असर रहा करता रहा है। हांलाकि अब उनका नाम सुनने को नहीं मिलता पर उनसे जुड़े वहां के वर्चश्व धारी लोगों का वहां की राजनीति में दखल काफी है। इस इलाके में कभी बसपा और कभी सपा के दामन में सीटों के परिणाम रहे हैं। 2007 में बसपा को यहां सफलता मिली तो 2012 में बसपा के मुकाबले सपा का परिणाम बेहतर रहा । भाजपा और कांग्रेस को बहुत कुछ खास यहां से हासिल नहीं हुआ ।

हर दल साधने में जुटा है
इस बार विधान सभा चुनावों के पहले ही सभी दलों ने बुंदेलखंड में अपने तरीकों से जनता को अपने पाले में लाने के लिए अभियान छेड़ रखा है। समाजवादी पार्टी जहां सूबे में अपने किए गये विकास के कामों का लेखा-जोखा और बुंदेलखंड के लिए दिए गये विशेष पैकेज को लेकर मैदान में है। तो बसपा अपनी सरकार ने बुंदेलखंड के विकास को लेकर किए गये कार्यक्रमों को हलावा देते हुए, जनता के बीच में आ खड़ी हुई है। तो वहीं भाजपा केन्द्र सरकार की ओर से बुंदेलखंड के विकास को लेकर किए जाने वाले और दिए जाने वाले पैकेजों के साथ अपने समीकरणों को सुधारने में लगी हुई है। वहीं कांग्रेस अपने सरकार में दिए जाने वाले बुंदेलखंड के विशेष पैकेज के अलावा इस इलाके में सरकार के समय किए गये कार्यों को लेकर जनता के पास जा रही है। लेकिन इस बार जनता का रूझान किस करवट बैठेगा ये एक बड़ा विषय है।

Piyush Shukla चुनावी दंगल विशेष- बुंदेलखंड को साधने के लिए बड़ी महाभारतअजस्र पीयूष

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