वैशाख मास के शुक्ल पक्ष को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है और इस साल ह पर्व 24 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इसे ‘जानकी नवमी’ के रुप में भी जाना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में महाराजा जनक संतान की प्राप्ति की कामना से यज्ञ की तैयारी में भूमि जोत रहे थे तो उसी समय धरती पर एक बालिका प्रकट हुई। जिस भूमि को महाराजा जनक जोत रहे थए उसे ‘सीता’ कहा जाता है, इसीलिए बालिका का नाम भी सीता रखा गया।
व्रत का महत्व
जिस तरह से राम नवमी को बहुत फलदायी माना जाता है उसी प्रकार सीता नवमी भी बहुत फलदायी है। इस पावन पर्व पर जो व्रत रखता है तथा भगवान रामचन्द्र जी सहित भगवती सीता का अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिभाव पूर्वक विधि-विधान से सोत्साह पूजन वन्दन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, महाषोडश दान का फल, अखिलतीर्थ भ्रमण का फल और सर्वभूत दया का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
पूजन की विधि
- ‘सीता नवमी’ पर व्रत एवं पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मण्डप बनायें। यह मण्डप सौलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए। मण्डप के मध्य में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम की स्थापना करें।
- पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एवं मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है। मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है।
- नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् जानकी-राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए।
‘श्री रामाय नमः’ तथा ‘श्री सीतायै नमः’ मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए। - ‘श्री जानकी रामाभ्यां नमः’ मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती करनी चाहिए।
- दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा-अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है