बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने बड़ा दांव खेलते हुए बीजेपी के वोटों में सेंध लगाने का काम किया है। कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत सुमदाय को अलग धर्म का दर्जा देने वाली सिफारिश को मंजूर कर लिया है। बता दें कि लिंगायत समुदाय सालों से हिंदू धर्म से अलग होने की मांग उठाता रहा है। इसी के आधार पर प्रदेश सरकार ने नागमोहन दास समिति गठित की थी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर राज्य कैबिनेट ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। हालांकि अभी इसे केंद्र की स्वीकृति मिलनी बाकी है। गौरतलब है कि लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब अप्रैल-मई में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
ये दांव कांग्रेस सरकार के लिए काफी अहम इसलिए भी है क्योंकि लिंगायत समुदाय सालों से बीजेपी का समर्थन करता आया है और राज्य में उसकी कुल आबादी करीब 18 फीसदी है। लिंगायत को फिलहाल राज्य में ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है। लिंगायत का विधानसभा की तकरीबन 100 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। यहीं नहीं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी लिंगायत हैं। वहीं बीजेपी लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग करने की मांग का विरोध करती रही है। येदियुरप्पा कांग्रेस पर लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर समुदाय में फूट डालने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं।
सके बाद संस्था ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ज्ञापन सौंप कर लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग की थी। महासभा पूर्व में दो बार केंद्र से ऐसी मांग कर चुका है, लेकिन दोनों बार इसे ठुकरा दिया गया था। पिछले साल ही 20 जुलाई को लिंगायत समुदाय ने बीदर में जबरदस्त रैली कर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को चौंका दिया था। अलग धर्म का दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकारें इसको लेकर सिर्फ अनुशंसा कर सकती हैं। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने पर समुदाय को मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 25-28) के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा भी मिल सकता है। इसके बाद लिंगायत समुदाय अपना शिक्षण संस्थान भी खोल सकते हैं।