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जहां हुआ बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है

09 47 जहां हुआ बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है

दो निशान,दो प्रधान, दो विधान नहीं चलेंगे! ! नहीं चलेंगे! ! यह शब्द सुनते ही आपके दिमाग में किसका नाम आता है? कहीं आप भूल तो नहीं गए! ! चलिए याद दिला देते हैं, यह शब्द जनसंघ के स्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हैं। जिन्होंने कश्मीर मुद्दे पर जमकर सरकार की आलोचना की और सरकार को आईना दिखाने का काम किया। वही श्यामा प्रसाद मुखर्जी जिन्होंने कश्मीर के परमिट मुद्दे पर लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दे दी, और बहुत ही रहस्यमई ढंग से इन्होंने अपनी जान गवाँ दिया।

आइए आपको बताते हैं आखिर वह मुद्दा क्या था? सबसे पहली बात ये कि मुखर्जी धारा 370 के विरोध में थे और उनका यह मानना था की धारा 370 एकजुटता के लिए खतरा है। उन्होंने इसके खिलाफ संसद में भी धावा बोला,बोला, और अपने भाषण में कई बार इसका विरोध भी किया। उन्होंने शेख अब्दुल्ला का विरोध किया। जिसमें शेख अब्दुल्ला चाहता था कि कश्मीर का अलग झंडा हो, अलग संविधान हो, और अलग प्रधानमंत्री हो। इसी सिलसिले में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश में दो विधान दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे का नारा दिया था।09 47 जहां हुआ बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है

मुखर्जी ने 3 फरवरी 1953 को जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को पत्र भी लिखा था। आपको बता दें कि उस वक्त कश्मीर में किसी अलग नागरिक को घुसने के लिए परमिशन की जरूरत होती थी, लेकिन मुखर्जी इस नियम के खिलाफ जाकर 1953 में कश्मीर में अवैध तरीके से दाखिल हो गए। उन्होंने इस परमिट वाले नियम का पुरजोर तरीके से विरोध किया और भूख हड़ताल कर परमिट नियम को खत्म करने की मांग की।

इसी सिलसिले में 11 मई 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी लखनपुर में गिरफ्तार कर लिए गए। उसके बाद उन्हें सेंट्रल जेल श्रीनगर भेज दिया गया। कुछ दिनों बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नगर के बाहर एक क्वार्टर में शिफ्ट कर दिया गया, जहां उनकी हालत बिगड़ती रही और 22 जून की रात को वह इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे। उनके इस रहस्यमई तरीके से मृत्यु होने के पश्चात कई सवाल भी उठे, स्वतंत्र जांच की मांग भी की गई लेकिन किसी ने इस मांग को जरूरी नहीं समझा, लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चलते दो निशान, दो प्रधान, और दो विधान असफल रहा और कश्मीर से परमिट सिस्टम का खात्मा हुआ। आज हम उन्हें याद करते हैं और यही कामना करते हैं की उनकी अंतरआत्मा को शांति मिले।

 

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