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कल है देवउठनी एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

devuthani कल है देवउठनी एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं. क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है.

धर्मग्रंथ के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु दैत्य शंखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्ण के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा. युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। जैसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है. इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है.

देवउठनी एकादशी 2020 तिथि : 25 नवंबर 2020
देवउठनी एकादशी 2020 शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी तिथि प्रारम्भ – रात 2 बजकर 42 मिनट से (25 नवंबर 2020)
देवउठनी एकादशी तिथि समाप्त – अगले दिन सुबह 5 बजकर 10 मिनट तक (26 नवंबर 2020)
शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक

अनुष्ठान की विधि
एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
अब भगवान विष्‍णु का ध्‍यान कर व्रत का संकल्‍प लें.
अब घर के आंगन में भगवान विष्‍णु के चरणों की आकृति बनाएं.
एक ओखली में गेरू से भगवान विष्‍णु का चित्र बनाएं.
अब ओखली के पास फल, मिठाई सिंघाड़े और गन्‍ना रखें. फिर उसे डलिया से ढक दें.
रात के समय घर के बाहर और पूजा स्‍थल पर दीपक जलाएं.
इस दिन परिवार के सभी सदस्‍यों को भगवान विष्‍णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.
इसके बाद शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्‍णु को यह कहते हुए उठाएं- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास.

क्यों मनाया जाता है पर्व?
शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए रहने निद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं. इस कारण इस दिन देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. देवउठनी एकादशी के साथ ही मंगल कार्य भी शुरू कर दिए जाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु को तुसली का क्रोध झेलना पड़ा. तुलसी ने क्रोध में भगवान विष्णु को श्राप से पत्थर का बना दिया. इस श्राप से मुक्त होने के लिए ही भगवान विष्णु ने शालिग्राम का अवतार लेकर तुलसी संग विवाह रचाया था. तुलसी को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है.

भगवान विष्‍णु को जगाने का मंत्र :
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’

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