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श्राद्ध की अष्टमी में करें ये विशेष उपाय, जीवन में होगी लक्ष्मी की कृपा

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  • धार्मिक डेस्क || भारत खबर

श्राद्ध पक्ष चल रहा है और ऐसे में एक-एक दिन बड़ा कीमती और महत्वपूर्ण होता है। पिछले कई आलेखों में हम आपको यह बता चुके हैं कि श्राद्ध पक्ष के क्या मायने हैं, इसका महत्व क्या है और इसको करने का सही तरीका क्या है।

आज हम आपको कुछ विशेष जानकारी बताने वाले हैं जिसे जानना आपके लिए बेहद जरूरी है। बहुत कम लोग जानते हैं कि भाद्रपक्ष की शुक्ल अष्टमी (राधा अष्टमी) से लेकर श्राद्ध की अष्टमी तक महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है और उनकी उपासना करने वाले भक्तों पर परम कृपा बरसती है।     

शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष की अष्टमी के दिन किसी भी ब्राह्मण सुहागन स्त्री को सोना, कलश, इत्र, जरकन, आटा, शक्कर और घी भेंट करें। इसके अलावा किसी कुंवारी कन्या को नारियल, मिश्री, मखाने तथा चांदी का हाथी भेंट करें तो आपकी जिंदगी में मां लक्ष्मी की कृपा के साथ-साथ संपूर्णता और संपन्नता की बौछार होगी।

अगर आपको ऊपर बताई हुई किसी ब्राह्मण स्त्री या फिर कन्या के मिलने में कोई दिक्कत या परेशानी हो रही है तो आप अपने घर की किसी स्त्री या फिर कन्या को यह दान स्वरूप भेंट दे सकते हैं। अगर आप भी चाहते हैं धन की बरखा में सुखद स्नान तो गजलक्ष्मी व्रत है अंतिम अवसर। यह विशेष संयोग अत्यंत शुभदायक है।

एक सितम्बर से 17 सितम्बर तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से सबसे ज्यादा लाभ मिलता है

1 सितंबर से 17 सितंबर तक चलने वाले पितृपक्ष में इस बार बहुत कुछ खास होने वाला है और इस दौरान काफी सारे मान्यताएं ऐसी हैं जिन्हें हमें जान लेना बहुत जरूरी है। पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या पड़ने वाली है।

अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व इसलिये है क्योंकि जन्मकुंडली में पितृदोष-मातृ दोष से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के लिए फलदाई मानी जाती है। पंचांग के अनुसार आश्विन मास की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। शास्त्रों में यह सर्व पितृ श्राद्ध  के नाम से भी जाने जाते हैं। हम में से बहुत से लोगों को इसके बारे में कुछ नहीं पता होगा तो आज हम आपको इसी के बारे में विस्तृत रूप से बताएंगे-

कथाओं के अनुसार क्या है मान्यता-

श्रेष्ठ पित्र अग्रिश्वात और बहिस्रपद की मानसी कन्या अक्षोडा घोर तपस्या कर रही थी इस दौरान वे इसमें इतनी तल्लीन हो गयी कि देवताओं के 1000 वर्ष बीत गए। तब सभी श्रेष्ठ पितृगण अश्विन अमावस्या के दिन अक्षोडा को वरदान देने के लिए उनके सामने आए। उन पितृ गणों के अमावसु नाम की एक अत्यंत सुंदर पितृ की मनोहारी छवि और तेज ने अक्षोडा को कामातुर कर दिया। वह उनसे प्रणय निवेदन करने लगी मगर अमावसु की काम प्रार्थना के प्रति अनिच्छा प्रकट की।

इससे अक्षोडा को अति लज्जित महसूस किया और अक्षोडा धरती पर आ गई। अमावसु के धैर्य की सभी मित्रों ने सराहना की। उनके वरदान के बाद से अमावस्या की तिथि अमावसु के नाम से जानी जाने लगी। ऐसे में इस दिन का बहुत अधिक महत्व है। जो व्यक्ति किसी भी दिन श्राद्ध न कर पाए तो सर्व पितृ श्राद्ध तर्पण करके सभी 14 दिनों का पुण्य प्राप्त कर सकता है। यही वजह है कि हर महीने की अमावस्या तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है यह तिथि सर्वपितृ श्राद्ध के रूप में जानी और मनाई जाती है।

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