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13 रत्नों की भांति शंख में मौजूद है अद्भुत गुण जानकर हो जाएंगे हैरान, पढ़ें पूरी खबर

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नई दिल्ली: शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है, सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। अन्त मेंविष्णु ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात्‌ सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था।

13 रत्नों की भांति शंख में मौजूद है अद्भभुत गुण

अन्य 13 रत्नों की भांति शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहींलक्ष्मी का वास होता है। इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है। शंख की उत्पत्ति के संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सृष्टी आत्मा से आत्मा आकाश से आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जलपृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है।

भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया। उसका खोल शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक असुर को मारने के लिए श्री विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख है। उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।

घर में शंख रखने और बजाने के ये हैं ग्यारह फायदे…

पूजा-पाठ में शंख बजाने का चलन युगों-युगों से है. देश के कई भागों में लोग शंख को पूजाघर में रखते हैं और इसे नियम‍ित रूप से बजाते हैं. ऐसे में यह उत्सुकता एकदम स्वाभाविक है कि शंख केवल पूजा-अर्चना में ही उपयोगी है या इसका सीधे तौर पर कुछ लाभ भी है।

दरअसल, सनातन धर्म की कई ऐसी बातें हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद हैं. शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं. कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े हैं. आगे चर्चा की गई है कि पूजा में शंख बजाने और इसके इस्तेमाल से क्या-क्या फायदे होते हैं।

1. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है।

2. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं।

3. पूजा-पाठ में शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है. जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं. अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है।

4. शंख के जल से जगत पालनहार भगवान् श्री हरी विष्णु तथा माता लक्ष्मी आदि का अभि‍षेक करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है।

‍5. ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छ‍िड़कने से वातावरण शुद्ध होता है।

6. शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है. ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती हैं. इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती हैं।

7. वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है. कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले हैं।

8. आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं. हालांकि इसका उपयोग एक्सपर्ट वैद्य की सलाह से ही किया जाना चाहिए।

9. शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है. पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमि‍त तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है।

10. शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं. यह दांतों के लिए भी लाभदायक है. शंख में कैल्श‍ियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है।

11. वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है. शंख की आवाज से ‘सोई हुई भूमि’ जाग्रत होकर शुभ फल देती है।

शुभ संदेश प्रत्येक हिन्दू को अपने घर मे शंख अवश्य रखना चाहिए।

– डॉ0 विजय शंकर मिश्र

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