नई दिल्ली। एक बार फिर द्वारका पीठ के शंकराचार्य जगदगुरू स्वरूपानंद सरस्वती ने रामजन्मभूमि विवाद को लेकर कहा कि 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में कारसेवकों ने मस्जिद नहीं, बल्कि मंदिर तोड़ा था। माना जाता है कि स्वरूपानंद सरस्वती और संघ के अलावा विहिप के बीच 36 का आंकड़ा रहता है। ऐसे में अक्सर स्वरूपानंद सरस्वती कुछ ना कुछ विवादित बयान जारी कर देते हैं। एक बार फिर उन्होने अयोध्या श्री राम जन्मभूमि विवाद को लेकर ताजा बयान जारी किया है।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के मुताबिक 6 दिसम्बर 1992 में कारसेवकों ने भगवान श्री राम का मंदिर तोड़ दिया था। उनका मानना है कि अयोध्या में विवादित जगह पर कोई मस्जिद ही नहीं बनी थी। वहां पर वो पुराना मंदिर था। उनका कहना है कि कोई ऐसा चिह्न वहां नहीं मौजूद था जिससे उसे मस्जिद कहा जा सके। उनका कहना है कि ना तो बाबरनामा और आईन ए अकबरी में ऐसा कोई उल्लेख मिलता है। जिससे ये साबित हो कि वहां कोई मस्जिद थी।
उन्होने कहा कि अदालत के आदेश के बाद हम वहां पर भव्य राम मंदिर का निर्माण कराएंगे। उन्होने कहा कि शंकराचार्य होने के नाते धर्म के हितों की रक्षा करना ही उनका दायित्व है। हांलाकि लगातार शंकराचार्य पर कांग्रेस का पक्ष लेने और कांग्रेसी होने का आरोप लगता है। इस बात को भी लेकर शंकराचार्य ने कहा कि आजादी की लड़ाई के समय से केवल कांग्रेस ही देश की सबसे बड़ी पार्टी थी। ऐसे में वो उसी पार्टी के समर्थक थे। लेकिन अब वह शंकराचार्य है और धर्माचार्य ही उनका अस्तित्व है।