नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के उत्तराधिकार से जुडे़ मामले में बुधवार को अबतक का सबसे एतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने महिला के मायके पक्ष को भी परिवार का हिस्सा बताया है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाहिता के मायके पक्ष के उत्तराधिकारियों को अजनबी बिल्कुल नहीं कहा जा सकता और वे लोग महिला के परिवार का ही हिस्सा माने जाएंगे। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी कहा किसी विधवा की तरफ से अपने भाइयों के बेटों के नाम संपत्ति करना गलत नहीं है। एक मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1)(डी) में महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है।
ये है पूरा मामला
यह पूरा मामला गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव का है। जहां केस के मुताबिक गढ़ी गांव में बदलू नाम एक व्यक्ति की कृषि भूमि थी। बदलू के दो बेटे बाली राम और शेर सिंह थे। शेर सिंह की 1953 में मृत्यु हो गई और उसका कोई संतान नहीं था। शेर सिंह की मौत के बाद उसकी पत्नी जगनो को उसके हिस्से की आधी जमीन मिली। जगनो देवी ने इस जमीन को अपने भाई के बेटों के नाम कर दिया। जगनो के भाई के बेटों ने अपनी बुआ से पारिवारिक समझौते में मिली जमीन पर दावेदारी करने के लिए कोर्ट में सूट फाइल किया। इस पर अदालत ने 19 अगस्त 1991 को उनके पक्ष में निर्णय दे दिया।
जगनो के देवर के बेटों ने जमीन पर की अपनी दावेदारी
जगनो के देवर के बेटों ने पारिवारिक समझौते में उनके परिवार की जमीन देने का विरोध किया। देवर के बच्चों ने कोर्ट से 19 अगस्त 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी और कहा कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती। अगर जगनों ने भाई के बेटों को जमीन दी है तो उसे रजिस्टर्ड कराया जाना चाहिए था क्योंकि जगनों के भाई के बेटे जगनों के परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे। निचली अदालत के बाद हाईकोर्ट में भी यह मामला खारिज हो गया। इसके बाद जगनो के देवर के बेटों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।