- भारत खबर || नई दिल्ली
रूस में स्थित साइबेरिया के जंगल में क्षुद्रग्रह Asteroid के कारण भारी विस्फोट हुआ था। जिसे लेकर वैज्ञानिक बेहद हैरान हैं। और अपनी कड़ी शोध कर रहे हैं। बताते चलें कि यह विस्फोट इस प्रकार का था कि दुनिया भर के सभी को एक अचंभे में डाल दिया। बताते चलें कि रूस में स्थित साइबेरिया के जंगल में 30 जून, 1908 में क्षुद्रग्रह के कारण भारी विस्फोट हुआ था। जिसने एक बड़े रहस्य को उजागर किया। इसे देखकर सभी वैज्ञानिक हैरान हो गए।
बताते चलें कि इस विस्फोट में किसी धरती पर किसी भी प्रकार का गड्ढा नहीं किया। इतने भारी विस्फोट को सभी वैज्ञानिक इस बात को लेकर हैरान हैं कि अपने किसी अवशेष को छोड़े बिना इतना बड़ा विस्फोट का होना कैसे संभव है।
इस बात को लेकर साइबेरियाई संघीय विश्वविद्यालय में डेनियल ख्रेननिकोव और उनके साथियों ने अपनी शोध जारी कर दी है। उनका कहना है कि यह विस्फोट एक बड़े क्षुद्रग्रह Asteroid के कारण हुआ था। जिसने पृथ्वी को चपेट में ले लिया और पृथ्वी पर प्रवेश करने के बाद वह वापिस आकाश मंडल की ओर चला गया। लेकिन यह घटना वैज्ञानिकों को बेहद हैरान करने वाली है।
वैज्ञानिक इस प्रकरण को लेकर बड़ी गंभीर रूप से चर्चा कर रहे हैं। इस पर विशेष शोध भी की जा रही है। वैज्ञानिकों का विचार है कि कि विस्फोट एक बर्फीले शरीर का परिणाम था। जैसे कि धूमकेतु ने वायुमंडल में प्रवेश किया उसी समय बर्फ तेजी से गर्म हो गई थी। और विस्फोटक रूप में मारपीट हो गई थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि अपने अवशेषों को छोड़े बिना इतना बड़ा विस्फोट पृथ्वी पर पेड़ों को समतल करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हो सकता था।
और यह वायुमंडल में वाष्प के अलावा बहुत कम सबूत छोड़ता था। लेकिन इस बात को लेकर वैज्ञानिकों का यह कहना है कि यह सिद्धांत कुछ अन्य साक्ष्यों के अनुकूल नहीं है। वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि उन्होंने अपने साथियों के साथ 12 मील प्रति सेकंड (20 किलोमीटर प्रति सेकंड) की गति से वायुमंडल से गुजरते हुए चट्टान, धातु या बर्फ से बने उल्कापिंडों के प्रभाव का अनुकरण किया। (उल्कापिंड 11 किलोमीटर प्रति सेकंड की न्यूनतम गति के साथ वायुमंडल में प्रवेश करते हैं।
वातावरण के साथ घर्षण इन वस्तुओं को तुरंत गर्म कर देता है। लेकिन जब लौह लगभग 5,432 डिग्री फ़ारेनहाइट (3000 डिग्री सेंटीग्रेड) पर वाष्पीकृत होता है, तो पानी केवल 212 डिग्री फ़ारेनहाइट (100 डिग्री सेल्सियस) पर वाष्पीकृत होता है। इसलिए बर्फीले उल्कापिंड लंबे समय तक नहीं चलते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि अभी हमारे द्वारा इस बड़े विस्फोट पर शोध की जा रही है और भी नये खुलासे हो सकते हैं।