- भारत खबर || नई दिल्ली
पर्यावरण में भारी तादाद में प्रदूषण के जमा हो जाने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता हुआ नजर आ रहा है। शहरों में दिन-प्रतिदिन भूकंप जैसी घटनाएं इस बात का अंदाजा देती है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ चुका है। बताते चलें कि एशियाई और अफ्रीकी इलाकों में पर्यावरण में भारी मात्रा में प्रदूषण इकट्ठा हो जाने के कारण वहां के पर्यावरण में बेहद परिवर्तन होता नजर आ रहा है। देश में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या इस कदर खड़ी है कि हिमालय की बर्फ भी बहुत तेजी से पिघल रही है।
एक शोध के अनुसार यह दावा किया गया कि पश्चिमी हिमालय में ऊंचे पहाड़ों पर उड़ने वाली धूल बर्फ के तेजी से पिघलने के प्रमुख कारकों में से एक है। सूत्रों के मुताबिक पता चला कि नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार, बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल भारी मात्रा में आकाश में टंगी हुई है। जो हिमालय की बर्फ को पिघलने के लिए बेहद खतरनाक है। यूं कियान, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के वायुमंडलीय वैज्ञानिक द्वारा की गई शोध से पता चला कि इस दूरी के कारण हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है।
शोध के द्वारा वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय की इस कदर पिघल रही बर्फ बेहद चिंता का विषय बनी हुई है। बर्फ का भारी तादाद में पिघलना खतरे की आशंका है। वैज्ञानिक का कहना है कि इसके द्वारा ग्लेशियर से पानी निकल कर नदियों में जाता है और इसके कारण नदियां उफान पर आती हैं। जिससे मानव जीवन भी प्रभावित होता है।
वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 700 मिलियन लोग अपनी मीठे पानी की जरूरतों के लिए हिमालय की बर्फ पर निर्भर हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का समाधान किया गया तो यह बरफ भारी मात्रा में पिघलेगी और इसके कारण नदियां उफान पर होंगी। जिसका सामना मानव जीवन को करना पड़ सकता है। और इस पर बहुत से नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।