नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई को रजामंदी दे दी है जिसमें तीन तलाक कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। बता दें कि याचिका में माना गया है कि तीन तलाक असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता के वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि इस कानून की वैधता को परखा जाए। इसमें जो मुस्लिम पुरूषों को तीन साल की सजा का प्रवाधान है वो सही नहीं है। वहीं इस पर जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि हम इसकी जांच करेंगे।
बता दें कि तीन तलाक बिल 30 जुलाई को राज्यसभा में पास हुआ था। जिस वक्त इस विल पर वोटिंग हुई उस वक्त इस विल पर पक्ष में 99 और इसके विरोध में 84 वोट डाले गए थे। बिल 25 जुलाई को लोकसभा से पास हो चुका था। इसके अगले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन तलाक बिल को मंजूरी दे दी थी। तीन तलाक कानून के तहत दोषी पुरुष को 3 साल की सजा सुनाई जा सकती है। साथ ही पीड़ित महिलाएं अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारे-भत्ते की मांग भी कर सकती हैं।
वहीं अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था। सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया था। क्योंकि विपक्ष लगातार इस बिल के खिलाफ था। विपक्ष की मांग थी कि अगर तीन तलाक में सजा का प्रवाधान है तो जमानत का भी प्रवाधान हो। लेकिन उसके बाद भी 2018 में भी ये विल राज्यसभा में अटका ही रहा। जिसके बाद सरकार सितंबर 2018 में एक अध्यादेश लेकर आई। इसमें विपक्ष की मांग को ध्यान में रखते हुए जमानत का प्रावधान जोड़ा गया। अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी। साथ ही जुर्माना भी होगा।