संत रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) इस बार बुधवार 16 फरवरी 2022 को मनाई जाएगी। यह संत गुरु रविदास की 645 वीं जयंती है। गुरु रविदास को रैदास और रोहिदास के नाम से जाना जाता है। गुरु रविदास भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत थे। गुरु रविदास के भक्ति गीतों और चंदू ने भक्ति आंदोलन पर स्थाई प्रभाव डाला इतिहासकारों के मुताबिक गुरु रविदास का जन्म 1398 मैं हुआ था वहीं कुछ जानकारों के मुताबिक उनका जन्म स्थान 1450 में हुआ था जानकारी के मुताबिक संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था वहीं कुछ लोगों का मानना है कि गुरु रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा पर हुआ था इसीलिए गुरु रविदास की जयंती हिंदू कैलेंडर के मुताबिक माघ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है वही संत रविदास का जन्म स्थान श्री गुरु रविदास जन्म स्थल के रूप में जाना जाता है। साथ ही यह गुरु रविदास के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थान है।
रविदास जयंती तिथि
गुरु रविदास की जयंती माघ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। और इस बार पूर्णिमा तिथि 16 फरवरी 2022 को है। जिसकी शुरुआत 15 फरवरी 2022 को रात 9:00 बजे से 16 फरवरी रात 1:30 बजे तक रहेगी।
रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच।
अर्थ :कोई व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा नहीं होता, बल्कि उसके गुण और कर्म उसे छोटा और बड़ा बनाते हैं।
‘जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात।
रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।
अर्थ: संत रविदास हमेशा से समाज की वर्ण वर्ण व्यवस्था का विरोध करते थे। उन्होंने कहा कि सभी प्रभु की संतान है, किसी की कोई जाति नहीं है।
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ: संत रविदास का मानना था कि सच्चे मन में प्रभु का वास होता है जिसके मन में छल कपट होता है उसके अंदर कभी प्रभु का बात नहीं होता। उनका कहना था कि अगर मन साफ है तो एक छोटी सी मटकी में भी गंगा विराजमान है।
रैदास कहै जाकै हदै,
रहे रैन दिन राम सो भगता भगवंत सम,
क्रोध न व्यापै काम।।
अर्थ: जिस हृदय में दिन-रात राम के नाम का वास रहता है. ऐसे भक्त में स्वयं में भगवान राम के समान होता है। राम नाम की ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले को ना तो क्रोध आता है और ना ही कभी कामभावना उस पर हावी होती है।
हरि-सा हीरा छांड कै,
करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
अर्थ: हीरे के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़कर अन्य आशा रखने वाले अवश्य ही नर्क में जाएंगे। यानी प्रभु की भक्ति छोड़कर जो इधर-उधर व्यर्थ में भटकते हैं उनका नर्क में जाना तय है।