वाराणसी: उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों में लगातार फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इसी बीच विशेष अनुसंधान दल (SIT) की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है।
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के परीक्षा अभिलेखों में हेरा-फेरी की जांच कर रही एसआइटी ने अपनी रिपोर्ट को सौंप दी है। इस जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदेश भर में संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी की ओर से जारी फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर एक हजार से भी ज्यादा शिक्षक नौकरी कर रहे हैं।
फर्जी प्रमाणपत्रों की जांच के लिए एसआइटी का गठन
आपको बता दें कि फर्जी डिग्री के सहारे सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने का खुलासा तब होने लगा, जब नौकरी पाने के बाद दस्तावेजों को सत्यापन के लिए विश्वविद्यालय भेजा गया। जब मामले ने तूल पकड़ा, तब शासन की ओर से जांच के लिए एसआइटी टीम गठित कर दी गई। दो साल पहले गठित एसआइटी ने अब अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है।
जानकारी के अनुसार, यूपी के परिषदीय स्कूलों में नियुक्त अध्यापकों के प्रमाणपत्रों की जांच जब संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में सत्यापन के दौरान शुरू हुई तो सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। एसआइटी जांच में अब तक 69 जनपदों में कुल 5,481 अध्यापकों में से 1,086 शिक्षक के प्रमाण पत्र फर्जी निकले।
एक हजार से ज्यादा शिक्षकों पर कार्यवाही तय
वहीं, 207 अध्यापकों के प्रमाणपत्र को संदिग्ध दर्शाया गया है। ऐसे में प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में तैनात 1,086 शिक्षकों पर कार्यवाही हो सकती है। एसआइटी की 99 पेज की जांच रिपोर्ट में संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी सवालों के घेरे में है।
कुलपति ने कहा- दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा
इस मामले में संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर राजाराम शुक्ला ने फर्जीवाड़े की बात मानते हुए बताया कि, वर्ष 2014 से पहले इस तरह के फर्जी प्रमाणपत्र जारी किए गए थे, जिसकी जांच एसआइटी ने पूरी कर ली है। जांच के आधार पर विश्वविद्यालय का जो भी कर्मचारी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ जल्द से जल्द कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि, छात्रों के भविष्य के साथ और विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी।