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रूस के उप शोध निदेशक ने वैक्सीन की जानकारी साझा की

वैक्सीन

स्पुतनिक ने गामालेया केंद्र में उप शोध निदेशक डेनिस लोगुनोव ने रूसी कोरोना वायरस वैक्सीन की वैज्ञानिक शोध के बारे में जानकारी साझा की है। इसके साथ ही उन्होंने बताया की इसके बारे में जल्द ही अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाएगा। लोगुनोव ने यह भी बताया कि वे इतनी जल्दी वैक्सीन बनाने में कैसे कामयाब रहे, हालांकि इसमें आमतौर पर कम से कम डेढ़ साल लगते हैं। उन्होंने कहा कि हमने वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता पर पहले ही क्लिनिकल अध्ययनों की एक पूरी श्रृंखला का संचालन किया है, जिसके लिए दो ​​अध्ययनों गए। जिसमे पहले चरण में 38 लोग और दोनों चरणों में कुल 76 लोगों शामिल किया गया है। जिनको लेकर जानकारी जुताई गई है। जिसमे सुरक्षा और इम्युनोजेनेसिटी के संदर्भ में वैक्सीन की जांच करते थे। इन अध्ययनों के परिणामों के आधार पर, वैक्सीन ने एक अच्छा सुरक्षा प्रोफ़ाइल और उच्च इम्युनोजेनेसिटी दिखाया। प्राप्त विशिष्ट संकेतकों और संख्याओं के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों के एंटीबॉडी का औसत ज्यामितीय टिटर 14,000 में 1 से अधिक, 15,000 में लगभग 1 पर पहुंच गया।

सेरोकोनवर्जन तब होता है जब किसी व्यक्ति का एंटीबॉडी टिटर प्रारंभिक, पृष्ठभूमि मूल्यों की तुलना में 4 गुना अधिक बढ़ जाता है। ह्यूमर इम्युनिटी मापदंडों का मूल्यांकन वायरस न्यूट्रलाइजेशन रिएक्शन के माध्यम से भी किया गया था, यानी एंटीबॉडी द्वारा वायरस की सीधी निष्क्रियता।

प्रतिरक्षा को लेकर किया विश्लेषण

उन्होंने बताया कि टीके के सूखे और तरल रूपों का उपयोग करते समय, सभी टीकाकारों ने हमारे टीका के साथ प्रतिरक्षित सभी स्वयंसेवकों में वायरस के एंटीबॉडीज को पाया है। विभिन्न सेलुलर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया संकेतकों का भी विश्लेषण किया गया था, विशेष रूप से, साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट्स, जो एक बहुत महत्वपूर्ण एंटीवायरल इम्यूनिटी पैरामीटर है।

अच्छा रहा टीके का परिणाम

साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट्स, जो शरीर से वायरस-संक्रमित कोशिकाओं को हटाते हैं, सभी टीकाकरण स्वयंसेवकों में पाए गए हैं। इस प्रकार, टीका ने इम्यूनोजेनेसिटी के संदर्भ में बहुत अच्छे परिणाम दिखाए हैं। सुरक्षा के लिए, इंजेक्शन साइट पर तापमान और दर्द के रूप में अपेक्षित प्रतिकूल घटनाएं सभी स्वयंसेवकों में नहीं देखी गईं। इन विशिष्ट नंबरों को शीघ्र ही प्रकाशित किया जाएगा।

वैक्सीन को लेकर उठ रहे थे सवाल

दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा करने के साथ ही रूस की स्पुतनिक वैक्सीन सवालों और विवादों में घिर हुई है। जिसको लेकर कई देशों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का आरोप है कि वैक्सीन तैयार करने में दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया और न ही ट्रायल के परिणामों को रिसर्च जर्नल में प्रकाशित कराया गया। पंजीकरण के दौरान दिए गए दस्तावेजों से भी कई तरह के खुलासे हुए हैं, जो वैक्सीन की प्रभावकारिता को लेकर संशय पैदा करते हैं। इन तमाम आरोपों के बीच रूस की ओर से एक चौंकाने वाला दावा किया गया है। दावा है कि जो वैक्सीन विकसित की गई है, उसकी तैयारी रूस में छह साल से चल रही थी।

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