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भारत की आजादी में आजाद हिंद फौज की भूमिका

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आजाद हिंद फौज

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साल 1942 में भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी नामक सशस्त्र सेना का गठन किया गया था। इस सेना का गठन रासबिहारी बोस ने किया था। शुरूआती दौर में इस फौज में उन लोगों को शामिल किया गया था जिन्हें जापान द्वारा युद्धबंदी बना लिए गए थे। लेकिन कुछ वक्त के बाद इस सेना में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक की भी भर्ती की गई थी। इसके एक साल के बाद सुभाष चंद्र बोस द्वारा जापान पहुंचने के बाद 1943 में जापान रेडियो से इस बात का ऐलान किया गया था कि इस बात की आशा करना बिल्कुत गलत है कि अंग्रेज अपने आप ही साम्राज्य को त्याग देंगे। घोषणा की गई थी कि अब वक्त आ गया है कि हमें भारत के अंदर और बाहर से स्वतंत्रता के लिए स्वंय ही कुछ करना होगा।

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21 अक्टूबर साल 1943 में सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति का दर्जा दिया गया था। जिसके बाद स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई गई थी इसके लिए जर्मनी, फिलीपीन्स, इटली, चीन, जापान, कोरिया तथा अन्य देशों द्वारा मान्यता भी दी गई थी। जापान ने अंडमान-निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिए थे। जिसके बाद अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा गया था। इसके बाद 30 दिसंबर 1943 को इन द्वीपों पर आजाद भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया था। लेकिन आजाद हिंद फौन ने 4 फरवरी 1944 को अंग्रेजों पर एक बार फिर से आक्रमण किया था। इस आक्रमण के बात कुछ प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी कराया गया था। वही आजाद हिंद फौज का प्रयाण गीत भी था। इस गीत की रचना राम सिंह ठाकुर ने की थी। इस गीत की ट्यून का उपयोग आज के वक्त में भी भारतीय सेना के प्रयाण गीत के रूप में होता है।

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