हिंदू धर्म में सभी त्योहारों के पीछे अलग-अलग मान्यता और कहानियां होती हैं। आज हम बात करेंगे गोवर्धन पूजा की। इसमें हम आपको बताएंगे कि भारतीय संस्कृति में गोवर्धन पूजा का क्या महत्व है और इस दिन गाय की पूजा क्यों की जाती है।
दीपावली के अगले दिन होती है गोवर्धन पूजा
हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्योहार दीपावली के अगले दिन, कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजन, गौ-पूजन के साथ-साथ अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन सुबह ही नहा धोकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्टों का ध्यान किया जाता है। इसके पश्चात् अपने घर या फिर देव स्थान के मुख्य द्वार के सामने गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना शुरू किया जाता है। इसे छोटे पेड़, वृक्ष की शाखाओं एवं पुष्प से सजाया जाता है। हिंदू धर्म में सभी त्योहारों के पीछे अलग-अलग मान्यता और कहानियां होती हैं। आज हम बात करेंगे गोवर्धन पूजा की। इसमें हम आपको बताएंगे कि भारतीय संस्कृति में गोवर्धन पूजा का क्या महत्व है और इस दिन गाय की पूजा क्यों की जाती है।
श्री कृष्ण के कहने पर ब्रजवासियों ने छोड़ी इंद्र की पूजा
भारत में प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। हिंदू मान्यता के अनुसार गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थे। मगर, भगवान कृष्ण के कहने पर एक साल ब्रजवासियों ने गाय की पूजा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान लाकर गोवर्धन की तराई में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से पूजन करने लगे। इसके बाद से ही हर साल गोवर्धन पूजा पर गाय की पूजा ही की जाने लगी। एक ओर ब्रज वासियों ने श्री कृष्ण के कहने पर की पूजा शुरू कर दी थी तो दूसरी और भगवान इंद्र की पूजा करनी भी बंद कर दी।
नाराज इंद्र देव ले आए प्रलय
पूजा बंद होने से भगवान इंद्र नाराज हो गए। इन्द्र गुस्से में लाल-पीले होने लगे। उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय पैदा कर दें। ब्रजभूमि में मूसलाधार बरसात होने लगी। बाल-ग्वाल भयभीत हो उठे। श्रीकृष्ण की शरण में पहुँचते ही उन्होंने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। वही सबकी रक्षा करेंगे। जब सब गोवर्धन पर्वत की तराई मे पहुँचे तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता-सा तान दिया और सभी को मूसलाधार हो रही वृष्टि से बचाया। 7 दिन तक भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की।
इंद्र देव को हुआ अपनी गलती पर पश्चाताप
यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी की हुई गलती पर पश्चाताप हुआ और वे श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है। आज भी लोग इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस पर्व पर गाय के गोबर की पूजा की जाती है।
घर के आंगन, छत या बालकनी में बनाए जाते हैं गोवर्धन
गोवर्धन पूजा में घर के आंगन, छत या बालकनी में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनको अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और गोवर्धन पर्वत को भी पूजा जाता है। इसके बाद गोबर से बने इस पर्वत की परिक्रम लगाई जाती है। इसके बाद ब्रज के देवता कहे जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट बनाने और भगवान को इसका भोग लगाने का विशेष महत्त्व है।