नई दिल्ली। कोरोना महामारी की आड़ में लोग पैसे कमाने के पीछे लगे हुए है। क्योंकि कोविड-19 की दवा बताकर मरीजों को जो दवाईं दी जा रही है उनका उन पर कोई असर नहीं दिखाई देता। जिसके चलते आज सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। जिसमें कोविड-19 के इलाज में रेमडेसिविर और फैविपिराविर के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिसके चलते गुरूवार को कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र से जबाब मांगा है। इस याचिका में भारत की 10 दवा निर्माता कंपनियों खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग की गई है।
दवा कंपनियों के खिलाफ दर्ज की याचिका-
बता दें कि याचिकाकर्ता एम एल शर्मा ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की रिपोर्ट कहती है कि इन दोनों दवाओं का कोविड रोगियों पर कोई प्रभाव नहीं है। जिसके चलते कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अनुरोध किया गया है कि सीबीआई को कथित रूप से बिना वैध लाइसेंस के कोविड-19 रोगियों का इलाज करने वाली दवाओं के तौर पर रेमडेसिविर और फैविपिराविर के उत्पादन और बिक्री के लिए भारत की दस दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। वकील एम एल शर्मा ने शीर्ष अदालत में जनहित याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से वैध लाइसेंस प्राप्त किए बिना कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए दवाओं का उत्पादन किया जा रहा है और इन्हें बेचा जा रहा है।
इन धाराओं के तहत कार्रवाई का अनुरोध-
शर्मा ने सीबीआई को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि भारतीय कंपनियों पर ड्रग कानून, 1940 के प्रावधानों के तहत धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के मामले दर्ज किये जाएं. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान पूछा कि इसके कारगर होने पर सवाल उठाने वाली WHO की रिपोर्ट कब आई थी? जिस पर शर्मा ने बताय कि कि रिपोर्ट 15 अक्टूबर को आई थी, लेकिन कंपनियां अभी भी इस दवा को कोविड का इलाज बताकर बना और बेच रही हैं।इस जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि भारतीय दवा निर्माता कंपनियां हैं, जिन्होंने विदेशी कंपनियों-Gilead Sciences, Inc.-US और FujiFilm-जापान के साथ रेमडेसिविर और अवागिन (फैविपिराविर) के उत्पादन और बिक्री के लिए साझेदारी का करार किया है. वे बिना लाइसेंस के कथित दवाओं का भारत में कोरोनावायरस के उपचार की औषधि के रूप में उत्पादन कर रही हैं और बेच रही हैं।