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रथयात्रा हमारे जीवन के अग्रगति का एक सांकेतिक सूचक है: मुक्तिनाथानन्द

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लखनऊ। श्री श्री दुर्गा देवी की काठामो पूजा एवं श्री श्री जगन्नाथ देव की रथ यात्रा उत्सव बड़े ही धार्मिक माहौल में पारम्परिक एवं पूर्ण रीतिरिवाजो के साथ विधिवत अनुष्ठानिक प्रक्रिया से  रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में मनाया गया। कार्यक्रम का यू-ट्यूब के जरिए सीधा प्रसारण भी किया गया। कार्यक्रम को दूर दराज के भक्तगणों ने इन्टरनेट के माध्यम से घर बैठे सजीव प्रसारण देखा।

उत्सव का शुभारम्भ रामकृष्ण मठ के दुर्गा मण्डप में साधुओं द्वारा सुबह 8 बजे श्री श्री ठाकुर की पूजा स्वामी इष्टकृपानन्द के द्वारा हुई। उसके बाद दुर्गा मण्डप में स्वामी मुक्तिनाथानन्द द्वारा वैदिक भजन (शांति मंत्र, नारायण उपनिषद, नारायण शुक्तम, दुर्गा सूक्तम और देवी सूक्तम) का पाठ हुआ। फिर स्वामी हरीशवरानन्द द्वारा भजन गायन हुआ एवं पुष्पांजलि अर्पित की गयी। संध्या आरती के पश्चात स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में समूह में श्री मदनमोहनअष्टकम का गायन हुआ।

श्री श्री जगन्नाथ देव की रथ यात्रा के अवसर पर प्रवचन में स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने बताया कि हमारे परम्परा में रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। कारण यह माना जाता है कि रथ में आसीन प्रभु जगन्नाथ को दर्शन करने से जीव मुक्त हो जाता है। उपनिषद् में कहा गया कि ’रथे च वामनं दृष्ट्वा  पुनर्जन्म न विद्यते।’

श्री माँ सारदा देवी एक बार पावन रथ यात्रा के अवसर पर पुरी में उपस्थित अनगिनत नर नारियों को देखते हुए आनन्दाश्रु विर्सजन किया। यह सोचते हुए कि प्रचलित प्रथा के अनुसार वे सब दर्शनार्थी मुक्त हो जायेगें। लेकिन बाद में उन्हें अनुभव हुआ कि र्सिफ दो एक मनुष्य ही मुक्त हांगें जिनका मन वासना से मुक्त है।

कठोपनिषद में यह मानव शरीर को एक रथ माना गया है। जिसके भीतर विराजमान आत्मा उनका रथी है। हमारे इन्द्रियां उनके घोड़े जैसे हैं जिसको मनरूपी लगाम से खींचा जाता है। हमारी बुद्धि इसकी चालक है। यानी हम अपने शरीर के माध्यम से मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर तक पहुंचना चाहते हैं तो आपना मन, बुद्धि, इन्द्रियांदि नियत्रण में रखते हुये आगे बढ़ना पड़ेगा। तभी हम आखिर में रथ (देह) के भीतर विराजमान रथी(वामन) भगवान को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। यही रथयात्रा का तात्पर्य है।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने यह भी बताया कि आज के दिन पुरी में श्री भगवान जगन्नाथ रूप में अपने अग्रज बलराम एवं बहिन सुभद्रा को लेकर तीन अलग-अलग रथ में यात्रा करते हुये साल में सिर्फ एक बार के लिए मंदिर से 3 किलोमीटर दूरवर्ती गुडिंचा मंदिर तक जाकर वहाँ 7 दिन के लिए निवास करते हैं। ताकि आम जनता उनके नजदीक से दर्शन व आराधना कर सके।

जगन्नाथ के रथ के नाम है नन्दीघोष या कपिध्वज जो कि 206 लकड़ी के टुकड़ों से बनता है। हमारे मनुष्य शरीर में भी 206 हड्डियां होती हैं, वैसे ही यह रथ के सोलह चक्के होते हैं जो हमारे शरीर में विद्यमान 10 इन्द्रियां (चक्षु, कर्ण, हाथ-पैर आदि) और 6 रिपु (काम, क्रोध आदि) के सूचक हैं।

तीन रथ में पहले बलराम उनके बाद सुभद्रा एवं सबसे आखिरी में भगवान जगन्नाथ स्वयं रहते हैं। बलराम गुरूतत्व के रूप में पहले रहते है उसके पीछे सुभद्रा भक्तितत्व रूप में रहती है। अर्थात पहले गुरू कृपा चाहिए ताकि हमारे जीवन में भक्ति का आगमन हो जाये। जिसके माध्यम से हम अखिर में परमप्रभु को प्राप्त कर सकें। इस अवसर पर रामकृष्ण मठ में आगामी दुर्गा पूजा के लिए दुर्गा प्रतिमा के कठामो पूजा भी स्त्रोत पाठ एवं भजन कीर्तन के साथ हुई थी।

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